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रात्री भोज के लिए युगल भोज्यकक्ष मे राजित है।तीन ओर गोल तकिये तथा बीच मे कोमल बिछावनि है।ऐसे ही दो आसन सखियो ने यू लगाए की बीच मे चौकी हो और युगल परस्पर निहोरा करते हुए भोज पावै।
लाल जु भोज कर चुके और अब जो लाडली जु भोजन करने लगी तब प्यारे जु ने शरारत करते हुए चौकी को जरा सा हिला दिया।
इससे प्यारी जु का कर जरा सा बहक गया और जो शाक था वो प्यारी जु के दाए कपोल पर जा लगा।प्यारी जु प्यारे जु की ओर देखने लगी की तभी प्यारे जु इनके निकट आए और अति निकट आकर अपने अधर प्यारी जु के कपोल पर रख कर ही लिया रस भोज।
यह मधुर रस भोज करके जब प्यारे जु ने जरा हटकर निज नयनो को भी अवसर दिया तब लाडली जु के इस कपोल की लाली देख लाल जु के अधर मुस्कुरा दिए एक रसीली मुस्कान के साथ किँतु तभी समीप खडी गुणमंजरी सखी जु बोली- तो लालजु आपने कर ही दिया प्यारी जु का विशेष श्रृंगार किंतु यह क्या लालजु ,आपने अधूरा सिंगार क्यू छोडा?
एक कपोल पर लाली और एक कपोल कनक बरण....दोनो का एक सा श्रृंगार करो।
ये सुनकर प्यारी जु सखी की ओर देखकर जरा प्रेममई डाँट से बोलि -सखी...
सुनकर सखी बोल पडी - राधे! श्रृंगार ही तो....हमसे क्या लज्जा।
कोई कुछ ओर कहते उससे पहले ही लाल जु प्यारी जु के दूसरे कपोल के निकट आए....प्यारी जु जरा पीछे हुई....लाल जु ओर निकट हुए....प्यारी जु ओर जरा पीछे पीछे हो तकिये पर ही....
फिर प्यारे जु ने सम्पूर्ण रस भोज किया...ओर न जाने कब तक ये ज्योनार चली।
जय जय
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