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उज्ज्वल श्रृंगार , संगिनी जु

*उज्ज्वल श्रृंगार*

श्रृंगार...श्रृंगार में सुख होत है...प्रेम होवै है...छुपा हुआ राग अनुराग होवै है...ऐसी प्रीति जिसमें श्रृंगार कौ सुख श्रृंगार धरन वाले कौ तो होवै है पर यांपै सुख छिपो होवै है जित तांई श्रृंगार धरह्यौ जावै है...अहा !!अद्भुत प्रीति...
सखी..सांचि प्रीति...सबनहुं तें तोरि...अटपटो लगै है ना...पर सखी..ज्ह सांचि प्रीति ज्ही श्रृंगार होवै है...जिसमें सबहुं तें प्रीति टूट जावै और एकहुं कै तांई ऐसे गहरावै के सांचि प्रीति कै तांई सगरी प्रीत झूठी है जावै और प्रेमास्पद तांई सांचि प्रीति में तो स्वैसुखनहुं तैं भी मन ना रीझै है...'प्रेम-प्रीति रस-रीति बढ़ाई...'
और ज्ही कहावै है*उज्ज्वल श्रृंगार*जो प्रियतम हेत धरह्यौ जावै है स्वयं को भी भुलाए कै...अहा !!
कबहुं निरखि हो मयूरी हंसिनी मैना कै पाईन में पैंजनियाँ सखी री...
आह !!एक और अटपटो सो भाव व्यापै ना...पर झूठो बखान नाए बनै री मोते...ज्ह मैना कै पैलां पैलां पैलियाँ पाते थिरकते नन्हे नन्हे पग सजै हैं स्यामा जु की प्रसादी पायल पहन...अहा !
अरी..प्यारे की प्यारी दुलारी स्यामा जु ही तो हैं ना उज्ज्वलस्मिता...जांके तांई कुंज निकुंज कौ तृणमात्र भी उज्ज्वल है जाए री...माधुर्य सौंदर्य की रसीली खान सौं...ऐसो उज्ज्वल सखी री के अपने पगनूपुरन की छनछन ना भावै...बस सुनै श्रीजू के चरणन की पगनूपुर झन्कार और पद थाप...अहा !!बस थिरकनो और गानो ही जानै...निहारै मूक ज्ह उज्ज्वल रसनहुं की उज्ज्वल जोरि कू...
सखिन संग विरचै ज्ह रस...प्रियाप्रीतम सुखहेत री...ज्ह रसनुंह सुनि सुनि...श्रीप्रिया प्रीतम...जैसे जैसे केलि रूपी रस कू श्रवै तैसे तैसे सुनत सुनत रोमांचित होत हैं...मदन की नई उमंग...नई चोंप...बढ़त है...ये तो कभी निपटै ही न।
उज्ज्वल है जाए नितप्रति नितनव री...
सखिन सौं सुरतांत कौ बर्णन सुनि सुख होत है...यथा कह्यौ
'निरखि निरखि निसि के चिन्हन रोमांचित है जाहिं।
मानो अंकुर प्रेम के फिर उपजै तन माहिं।।"
सखी...ज्ह प्यारी जू ऐसी उज्ज्वलस्मिता के जाकै माधुर्य रसनहुं ते स्वयं सुंदरस्याम भी क्षुधित निहारै जाकी उज्ज्वलताई कू और तनिक रसीले अधरन की सिहरन थिरकन सौं बलिहारि जावै है...उज्ज्वल है जावै...परस्पर उज्ज्वल श्रृंगार धरि धरि उज्ज्वलरस रास सौं रीझै रिझावै...
स्यामा जु सजै हैं स्यामहुं की रस तृषा हेत और स्यामहिं निरखै प्यारी नै प्यारी जु की रसक्षुधा हेत...दोऊ दोऊन की तांई सब रस ही रस में खेलैं प्रीति की अति न्यारि रीति में ...
" फूलनि सौं फूलन सजै फूलनि कै तांई फूलनि कौ सिंगार फूलनि कै सिंगार ते फूलन रीझि जाई"
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!

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