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श्रृंगार की सिहरन , संगिनी जु

ललित श्रृंगार रमन को निरखत श्रीराधा मन मनहि सिहावै ।
आरसी में प्रतिबिम्ब लखत पुनि अंचल ओट मृदुल मुसिक्यावै ।।

अतिहि मनभावन सिंगार प्रेममय  सखिन दिव्य प्रेम की साक्षात जीवंत मूर्त श्यामा जु नै धरा रही है।माथे पर सुघर सलोनी बेंदी सौं लै पदकमलन में नूपुरयुक्त अनवट बिछुवे सगरी प्रेमाभूषण की अति दिव्य रसमयी साज सज्जा स्यामा जु कै गौर सुवर्णिम सुअंगों पर सुसज्जित ह्वै कै स्वयं कू अति सौभाग्यशाली जानै...ज्ह सिंगार स्यामा जु कौ सजावन तांई होवै ही ना...अपितु यांके अद्भुत रूपसौंदर्य कू छुपा लेवै है ताकि यांकि प्रियमनभामिनी सुखमयी रूपमाधुरी का प्रथम दरस प्रियतम कू रसमूर्छा ना पहुँचावै....ऐसी प्यारि सुकुमल रूपसौंदर्यता सुष्ठु द्वादशरूपधारिणी सौलहसिंगारिनी गुणशालिनी हमारी प्रिया जु जिन्हें स्वयं त्रिभुवनाधिपति सौंदर्यातीत स्यामसुंदर भी निहारैं तो रसजड़ता कू प्राप्त हैं जावैं तब सखियन यानै बार बार अनंत बार संभारैं और प्रिया जु कौ सिंगार धराए देवैं...अहा !!चिरजीवै ज्ह सांवरो सलोनो रसजोरि प्यारे प्यारी जु की...
हस्तकमलन की चूरी सौं उदर की अतिहि सजीली बावली नाभिसर कू ढांपती उरधरी तांई...और त्रिवलीयुक्त कस्तुरीरंजित हिय तें कटिबद्ध सौं धरा तक लटकती सुंदर दिव्य मणिफूलनि की मालिकाएँ...कज्जल रेख सौं करकमलन व पद्दरागिणी कै चरणन की लाल के लालित्य से सनी रसमहावर तक....अहा !!एक एक सुंदर उज्ज्वल रसिकहिय मनमोहिनी कौ सिंगार....कैसे बखानूं री...
स्याम वेणी की सोभा जितै सखि अतिहि प्रेममयता ... सल्लजता सौं हस्तउंगरिन सी करकंघी सौं संभारती कलिमणिन सौं सजाती गूँथ रही है...जैसे स्यामा जु कै रूप कै पाश में उरझै प्रियतम कू ही नियमित कर प्रियाजु कै वामंग पर बिरजवा रही और कोटि कोटि चंद्र चाँदनी कौ यांकि निशाकालीन तारांगन सौं सुसज्जित अद्भुत सेज कू विनिंदित करती प्रिया जु कै अनंत रवि रश्मियों सम चमकते ललाट पर सजी चंद्रिका.....अहा !ऐसी शौभायमान कि स्यामसुंदर जु तो पलकें झुका लेवै और यांके चरणों में ही लौटै...
सर्वगुणसम्पन्ना सदैवसुहागिन नितनव दुल्हिनि स्यामा जु कौ माँगटिक्का लगाती सखिन कू स्यामा जु कौ पूर्ण दरसन करनन तांई संकोच होवै है और ज्ह भोरी सखि स्यामा जु की माँग में सुहागचिन्ह सेंदूर भरण तांई कर बढ़ावै है तो स्यामा जु यांकै कर सौं चुटकीभर सेंदूर धर लेवै है ...च्यों री !
अद्भुत  !जहँ स्यामा जु कौ सिंगार पूर्ण भयो और तहँ स्यामा जु कै सन्मुख स्यामसुंदर जु कौ माधुर्य छबिन कौ सिंगार....आह !द्वैरसमूर्तिन कै द्वै द्वै नैन जैसे रसभींजै परस्पर निहारते द्वै है रहै...चंद्र चकोर सूं या चकोर चंद्र सौं निरखै एक रस भए प्रेम कै खिलौना दोऊ...अहा !
स्यामा जु हस्तकंवल की सुकुमल जावक सौं महकती प्रथमना व अंगुष्ठ में सेंदूर लिए आरसी कै सन्मुख आवैं और नयन झुकाए जैसे प्रियतम सौं कह रहीं प्रियतमा कू पूर्ण सिंगार धराने कौ....और स्वयं कर उठाए माँग भर लेवैं हैं जैसे प्रियमन भर रहै...
अहा !मस्तक पर कर ....पलकें झुंकीं आनियारे से दो नयन और यांकी कोरन सौं बहता प्रेम जु प्रियहेत प्रियछबि निहारन सौं लजावै ....
स्यामा जु कौ पूर्ण सिंगार सौं स्यामसुंदर जु की पूर्ण माधुर्य सौंदर्य रसीली छबि बनठन प्रेमोत्कर्षिणी स्यामा जु निहार रहीं और आरसिन दिखाती प्रेमसखी तो कम्पित भई रसमूर्ति स्यामा जु की रसभीनि छबिन कू निहार...
आह......
चिरजीवो...चिरजीवो....चिरजीवो....
अंतिम पर सबनहुं कै हियवासित प्रेममना स्यामा जु कौ पीतसुपीत लाल ओढ़नी धरातीं सखिगण ....अहा !प्रिय का प्रेमावरण ही ढुरक रह्यौ यांकि रसीली स्यामा जु कै अतिहि सुघर दिव्य प्रेम कू अंगीकार कर रह्यौ....विशाल भुजाओं में भर कर समेट रह्यौ प्यारी कौ....गोद में बिराजित कर जैसे नयनन की अपलक निहारन सौं नेहसुमन अर्पित कर प्रेमाभक्ति सौं आरती उतार रह्यौ....
जयजय...जयजय...जयजय....

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