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युगल बिहार भाव बिहारपंचमी , संगनी जु

किशोर युगलं नौमि श्रीनिकुञ्जधामिनं
सर्वतोSपिसुसुखदं पराभक्तिप्रदायकम्।
गौरश्यामाद्वयवपु रूपलावण्यसागरं
सुखवृद्धिकरं वन्दे सखीजनसुसेवितम्।।

!! श्रीहरिदास !!
श्रीविठलविपुल बिहारीलाल जु की जयजय !!
जयजय श्रीराधे ...जयजय श्रीकृष्ण  !!
जय बाँके बिहारी लाल...जय श्रीराधिका रिझवार की जयजय !!
श्रीजानकीवल्लभ जु के विवाहोत्सव पर विशेष बधाई !!
!!जयजयश्रीश्यामाश्याम...श्रीश्यामाश्यामजयजय!!

आज सखी अजब शोभा निकुंज मंदिर की ...आज सखी अजब शोभा वृंदावनकुंज भवन की...सखी !आज दिन अति सुहावनो ...मंगलकारी....
प्रीत के यौवन की बहुताई रसमझार श्रीश्यामाश्याम जु कौ मंगलाचार शुभ विवाहोत्सव मिलनोत्सव आज ....
नित्य दम्पति युगल किशोर किशोरी जु दुल्हा दुल्हिन बने निकुंज भवन में झूलन पर विराजित परस्पर निहार रहे और प्रिय सहचरीगण इनकी निहारन को निहार बलिहारी जातीं ना आघाती...आशीष देतीं हियकुंज सेज पर सुमन बिछातीं सखियाँ नेत्रों से भरी भरी छलक रहीं हैं और रसबूंदों की छलकन से प्रियालाल जु के अद्वितीय अद्भुत प्रेम के हिंडोरे को सजा झुला रहीं हैं ...नयनाभिराम छवि कौ नयनाभिराम सुख सखी री...
कहने भर को श्रीकृष्ण अनंतानंत रूपलावण्य की छवियों गोपवृंदों के अनंतरस प्रेम में छके से रहते हैं और रसतृषा हेत मुकुट झुकाए रहते हैं कायव्यूहरूप अनंतरागानुराग से परिपूर्ण सखियों के कमलदल चरणनखों पर...पर सांची प्रीति यांकी सदा मिलित अपनी अंतरंग प्राणप्रिया प्राणशक्ति प्राणवायु प्राणाचार्या  प्राणात्मात्म प्यारी श्यामा जु पर सखी....जैसे जानकीवल्लभ मर्यादापुरषोत्तम श्रीराम ही अतिसुकोमलता से अनंतनाग सेहरे बंदनवारों की ओट कर निहारते अपनी सुखदायिनी सुखदामिनी सुख की अपार निधि श्रीकिशोरी अतीवरसमाधुर्या अतीवसौंदर्या अति सुकुमारी जीवनी गौरांगी श्यामाप्यारी रूप की राशि श्रीसिया जु को...अहा !!
सखी..कुंजभवन के प्रांगण में रासमण्डल सजा रहीं सखियाँ और रासमण्डल की प्रेम प्रत्यंचा को संभाले संवारे नयनों की पलकन से बुहारते रसिक शिरोमणि हरिदास भक्तगण....जयजय !!दण्डवत् सहृदेष्ट कोटि कोटि प्रणाम व चरणस्पर्श युगचरणों में ....अलि अलिन....सर्वस त्याग कर शरणागत हुए अबाध विशुद्ध प्रेम के हिंडोरणों को मंद श्वासन की आवन जावन से अति सुकोमल युगल को सुकोमलता से झुलाते....अहा !!
सखी इतने सुकोमल यह पियप्यारी कि इन्हें नयनों के हिंडोरे में हियकमल की सेज पर श्वासों की मंदस्मित महकी रसीली ब्यार सौं ही झुलाह्यौ जा सकै ना....हाय !!बलिहारि....
सखी...रासमण्डल भी कैसा....जैसे लीलास्थली श्रीवृंदावन .... वृंदाटवि स्वयं रसश्रृंगारित सुमनपल्लवों से सुशोभित झालरों बंदनवारों से भींजन सेवा करती रसप्लावित भई...अहा !
एक एक पुष्प किंकणी बना रसमाधुर्य में झूम झूम कर रसनिर्झरन से मयूर कोकिल संग मंगलाचरण की मधुर रसध्वनियों में लीन श्रीयुगल चरणार्विंदों में भावार्पित हो रहा है....
सखी....अनंतानंत किंकरी मंजरीगण सेवापरायणा मधुर गीत गा रहीं हैं और निकुंज की धरा पर मकरंद ऐसा बिछा है कि रसमधुकर अनंत रसपिपासु जुगनू बने टिमटिम करते राग अनुराग से छके इन श्रृंगारित रसवल्लरियों पर ढिठोना बने मंडरा रहे पर ऐसा राग कि मन की आँखों से भी ना छूते यह रसप्रवीण श्रीयुगल रस में डूबी इन कुलीन कलियों का....स्पर्श भी ना करते पर गुनगुन करते प्रेम राग में मत्त हुए गहन सुकोमलता से विचर रहे कुंजवीथियों में...जयजय मधुकर रसपिपासु !!
सखी.... रासमण्डल की अत्यधिक सुंदरतम रसभरी रससिज्या पर मध्य में श्रीयुगल विराजमान हैं और उनके चहुं और उनकी प्यारी रतनारी अनियारी सुकुमारी रसछकी वीलीन तल्लीन युगल प्रेम से प्रगाढ़ प्रीति में रचीबसी सखियाँ...
सखी...यह सब सखियाँ केवल श्रीकृष्ण प्रेयसियाँ नहीं अपितु श्रीश्यामा ममभाविनी उनकी स्पंदनशक्ति रससहचरी कायव्यूहरूप श्रीयुगल के अजर अमर सुहाग पर न्यौछावर असीम रस की खान श्यामा जु की अतरंग प्रेम वल्लरियाँ हैं जिनके युगों युगों से प्राणप्रियतम श्रीयुगल हैं।
सखी...प्रियालाल जु की प्रीति पर बलिहारी सखियाँ रासमण्डप में विराजित श्रीयुगल को घेरे नृत्य कर रहीं हैं ....यहाँ कोई एक एक सखी और एक एक मोहन का तानाबाना नहीं है सखी अपितु श्यामवर्णा सखी सहचरि संग गौरवर्णा श्यामाजु की सखी सहचरियों की विशुद्ध प्रीतरस का अतिसुंदर सुरम्य गहन रासमण्डल संरचित है जिसके ललाट मण्डप पर श्रीयुगल सुहाग रूप विराजित हैं।
अहा !!शब्दहीन ...निःशब्द...ऐसी अद्भुत रूपमाधुरी रसीली रसवल्लरियों के मध्य रसयुगल विराजित भए राग रागिणियों में गहनतम डूबे रासमण्डल की दिव्य सेज पर शौभायमान हैं और सखियाँ उन्हें घेरे हुए नृत्य करतीं सुखसार बनीं मन ही मन भावापन रसीले श्रीयुगल को सपंदित रसडुबकियाँ लगाते मुंदे नेत्रों से निहार भी नहीं पा रहीं और युगल परस्पर प्रेम के हिंडोरने में प्रेम की प्रगाढ़ रसतरंगों में निमग्न झूल रहे........रसवर्षा कर सखीवृंद सहचरियों को अतिरस की गहन मौन रसधाराओं में भिगा रहे....
जयजय जयजय जयजय !!
"राधा हित आनंदघन मुरली गरज रसाल ।
राधा हींके रस भरे मोहन मदन गुपाल ॥"

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