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Showing posts from October, 2017

शुद्ध प्रेमविलास मूर्ति श्रीराधा , मृदुला जु

*शुद्ध प्रेमविलास मूर्ति श्रीराधा * समस्त लोकों के समस्त प्रेम भावों से अतीत है श्री ब्रजपरिकरों का निरुपाधिक प्रेम । निरुपाधिक अर्थात् उपाधि रहित । ऐसो प्रेम जिसे न किस...

नववया किशोरी नव्याजु , संगिनी जु

*नववया किशोरी नव्याजु* नववया ...  और खिल गई वह ... अभी पूर्ण ... न ... नहीं , पूर्ण नहीं सम्पूर्ण सुधार्णव सौंदर्या थी । पर , प्रेम नित्य वर्द्धन ... श्रृंगार - रूप - कौमार्य - लावण्य सब गहरा हो र...

श्रीप्रिया चरण , मृदुला जु

श्रीप्रिया चरण श्रीप्रिया चरण श्रीप्रिया चरण आह ! सदा सर्वथा मम् उर मंडल में वासित मेरी प्रिया के कोमल पल्लव । मेरे जीवन सार का सार ये श्रीचरण । कौन से कहुँ या की महिमा कौन स...

प्यारे के नयन , मृदुला जु

प्यारे के नयन कब तक है यह मन जब तक इसे स्थिर रस ना मिले । यह वास्तविक सौंदर्य से ना टकरा जावें , दृष्टि बन भागता यह मन बहुत भागे तो टकरा जाता .. हर लिया जाता प्यारे के नयनों से ... आह ! प...

प्रेमाणु , मृदुला जु

प्रेमाणु प्रेम  वास्तव में स्वयं में ही होता है   । पर तत्व में संभव ही नहीं । पर की प्रतीती भ्रम उपस्थित करती है । हौं भ्रम मान लाख भागने को चाहूँ पर स्व से कैसे भागूँ । कोई ज...

सोहनी महिमा

---------------*सोहनी महिमा*------------                  ।।दोहा।। रे मन नवल निकुंज की, सुमिर सोहनी प्रात। लपटी प्यारी चरण रज, लसत सहचरी हाथ ।।१।। अहो सोहनी सोहनी, यह मति मौको देहु। अति अधीनता दीन...

श्रीप्रिया-तृषा , श्रीमृदुला जु

श्रीप्रिया-तृषा श्रीकृष्ण रसराज संपूर्ण चराचर समस्त जीव सत्ता के लिये परंतु तृषित हैं केवल श्री राधिका के समक्ष । जिनके भी लिये श्री कृष्ण इंद्रियगम्य होतें हैं मात्र ...