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Showing posts from November, 2015

हाय मोरा पियु बिन । प्रेम रस मदिरा ।

हाय मोरा, पिया बिनु जिया घबराये | बरसों बीत गये गये घर सों, परसों कितक विहाये | कहँ लौं मन समुझाउँ सखी अब, मनहूँ भये पराये | सुधा समान बैन सखियन के, विष सम मोहिं जनाये | छिन आँगन छिन ...

मनीषा पंचकम् की सीख

💢💢💢💢💢💢💢💢💢💢💢💢💢 ➡ मनीषा पञ्चकं की सीख   ➡ जिसने अपने गुरु के वचनों से यह निश्चित कर लिया है कि परिवर्तनशील यह जगत अनित्य है । जो अपने मन को वश में करके शांत आत्मना है । जो ...

कहो कौन मुँह लाइ कै रघुबीर गोंसाई

🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 पाती प्रभु के नाम 📝📝📝 हे रघुवीर ! हे स्वामी ! कौन - सा मुहँ लेकर आपसे कुछ कहूँ ? स्वामीकी दुहाई है, जब मैं अपनी करनीपर विचार करता हूँ, तब संकोचके मारे चुप हो रह...

श्रीनरोत्तम प्रार्थना

🐚        श्रीनरोत्तम प्रार्थना        🐚 ✨हरि हरि ! आर कि एमन दशा हव । 🔸ए भव संसार त्याजि, परम आनन्दे मजि ✨आर कबे ब्रजभूमे जाव ॥ ✨सुखमय वृन्दावन ,कबे हवे दरशन ,से धूलि लागिबे ...

किशोरी जी से प्रार्थना

हे श्रीकिशोरी राधिके जू !मेरे अनंत अपराधो के लिऐ मैं आपसे क्षमा-प्रार्थी हूॅ ।�। ।मैं तुम्हारा अज्ञानी और अबोध बालक हूॅ और तुम ही मेरी माॅ हो ।अनादि काल से अनंत जन्मो में म...

रसिकों की कृपा

रसिक रँगे जे युगल रंग,तिनकी जूठन खाइ। जहाँ तहाँ के पावने,भजन तेज घटि जाइ।। इष्ट मिलै अरु मन मिलै,मिलै भजन रस रीति। मिलिये तहाँ निशंक ह्वै,कीजै तिनसों प्रीति।। जिनके देखे प...

प्रेम स्वामी रामसुखदासजी

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ प्रेमीका प्रेमास्पदकी तरफ और प्रेमास्पदका प्रेमीकी तरफ प्रेमका एक विलक्षण प्रवाह चलता रहता है । उनका नित्ययोगमें वियोग और वियोगमें नित्ययोग--इ...

ek laalsa एक लालसा

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ‘मेरा भगवान्‌में ही प्रेम हो जाय’—इस एक इच्छाको बढ़ायें । रात-दिन एक ही लगन लग जाय कि मेरा प्रभुमें प्रेम कैसे हो ? एक प्रेमके सिवाय और कोई इच्छा न रहे, ...

ek laalsa एक लालसा

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ‘मेरा भगवान्‌में ही प्रेम हो जाय’—इस एक इच्छाको बढ़ायें । रात-दिन एक ही लगन लग जाय कि मेरा प्रभुमें प्रेम कैसे हो ? एक प्रेमके सिवाय और कोई इच्छा न रहे, ...

प्रीतम का झुनझुना

प्रीतम का झुंझुना (खिलौना) खिलौना कितना ही छोटा हो उसमें भोक्ता को देने के लिये रस है | जीवन एकरंग मंच है ! और हमें अभिनय करना है ! देह केवल अभिनय हेतु है ! और इस अभिनय को इस तरह करना...

आशा निराशा पिपासा और तृषा

आशा , निराशा और पिपासा ... क्यो ? से मुक्ति अध्यात्म में अनिवार्य है ! क्यों ? से निवृत हो कर ही भगवत् पथ खुलता है ! तब ही जिज्ञासा प्राप्त होती है ... तर्क वितर्क हो कर गर्भ में ले जायेग...