राधा तत्व श्री श्याम पिया
प्यारी सखी कछुक कहूं तोसे अपने हिय की ॥ सब जगत गावे कृष्ण तत्व श्री राधा , पर जानत है मोहे क्या लागत है । मोहे लागत राधा तत्व श्याम हैं । जानती है राधिका के परम प्राणों का परम सार तत्व विग्रह ही तो कृष्ण नाम लीला वपुः है री । राधा के महाभावरूपी हृदय के महासार का परम तत्व है कृष्ण ॥ अरी सखी क्या कहूँ तो से राधिका का गहनतम् परम अंतरंगतम् रूप ही तो है श्यामसुन्दर ॥ जगत् तो राधा को देखे परंतु राधा जब स्वयं को निरखना चाहे तब देखे मनहर रूप को । अरी पूर्णतम् राधा जो देखन चाहो तो देखो उस नीलमणि को ॥ कहने लगता है उस हँसिनी का रोम रोम ... क्या देखोगे राधा में देखो उस विधुवदन को । क्यों नहीं देखते उस कोटि कोटि राधा सार विग्रह जीवन मणि महाप्राण को ॥ राधा में राधा नहीं पा सकोगे राधा को जानना है तो देखो न राधा के प्राण तन्तुओं से बने हुये उस प्राण कुंवर को । राधा में संपूर्ण राधा नाहिं है वह तो है कहीं और ही ,छिपी भी और प्रकट भी । स्वयं को पूर्ण पाती भी वहीं ।बस वही नील इन्दीवर कलेवर ही तो पूर्णता है राधा की ॥
संगिनी पियरँगिनी रँगी रहत पिय प्राणन
जिन पिय प्राण हूँ बसत है , सरवर छुपत रूप अरविन्द तहाँ खिलत है
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