श्री राधा
विनीत विनती
निकुंज कुंजी धारिणी समस्त सखियों की आदि गुरु रसिक रसीली रसिक सिरमौर युगल सुख प्रवर्तिका नवल केलि प्रवीण राधिका प्राणाधिक प्यारी हे श्री ललिता जू तव चरण वंदन बारम्बार ॥ हे स्वामिने हे परमोदारे आपकी अहेतुकी कृपा का एक नन्हा सा बिंदु इस रसविहिना परम मलिना दीन परंतु दैन्य रहित संसार पंक निमग्ना किंकरी पद अभिलाषिणी पर छिटका दीजिये ॥ हे कृपा वारिधि उन रसरूप रसीले युगल की नित्य विहार स्थली परम प्रेम रूप निकुंज में तव दासानुदासी की चरण किंकरी कर रसपथ रीति सिखा दीजिये ॥ हे भामिनी आपके परम अनुग्रह से ही रसविहीन जीव हृदय में रस कणिका उदित होती है । हे नागरी मुझ दीन पर वही रस कणिका छिटका कर निकुंज प्रवेश की पात्रता प्रदान कर दीजिये ॥ कोई भी छोटी सी रस सेवा का अधिकार देकर अनुग्रहित कर दीजिये ॥ आप कृपा कर देवें तो निज पलकों की सोहनी बना रस पथ बुहारा करुं नित ही ॥ या लाकर यमुना जल पथ सिंचित करुं प्रति भोर ॥ आप कृपा करें जो प्यारी तो श्रृंगार सेवा हित कोमल पुष्प चुनुँ उपवन से ॥ कृपा करो जो स्वामिनी चंवर ढुलाऊँ । या फिर युगल पथ पर प्रसून सजाऊँ ॥ छिप छिप कर निरखूँ प्रिया लाल की रसभरी क्रीड़ा ॥ खेल खिलाओ जब भाँति भाँति के तुम मैं भी सहयोगी बन जाऊँ ॥ हे रस सिद्धांत उत्कर्षिणी आपके कृपा कटाक्ष से सिंचित होकर यह कृपा सिक्त कणिका भी नित्य विहार साक्षी हो जावे ॥ हे दयानिधि आपकी कृपा दृष्टि मात्र ही इस रस पथ से दूर छिटकी हुयी रस रहित कलिका को रस रंजित कर युगल पाद पद्मों में अर्पण कर सकती है। हे मधुरे हे कृपा विलासिनी मोहे भी निज कर लीजिये न ॥ तुम ही तो युगल प्रीति की वह अमरबेल हो स्वामिनी जिस पर नित नव मंजरियाँ कलिकाएँ पुष्प प्रसून जीवन पाते हैं । नित नव प्रीती सुमन खिल खिल कर तुम्हारे ही हृदय रस को प्राणों में सहेजे हुये युगल पर मधुवर्षण करने हित लालायित रहते हैं ॥ तुम्हारा हृदय राग ही तो इन नव मंजरियों की भीनी सुगंध है जिनसे ये प्रीति मंजरियाँ उन रसिक युगल के मन को सरसातीं रहतीं हैं ॥ स्व मान मुझे भी सजा दीजिये निज प्राण युगल रस विहार पथ पर रस कलिका सी ॥
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