श्री राधा
प्रीति की कलियाँ प्यारी सखियाँ
हलरावे दुलरावे नित प्राणों से लाड लडावे ।
निज प्राणों की प्रतिमाओं सी युगल छवि पर बलि बलि जावे ॥
युगल प्रेम के गीत ये गाती लहराती मुस्काती नवल प्रेम के पुष्प खिलातीं ॥
परम त्याग की मूर्ति मनोहर ये युगल सुख में सब सुख पातीं ॥
कभी मंद पवन होकर ये रति श्रम बिंदु सुखातीं ।
कभी रस बिंदु बन बरस गगन से अतिशय मोद छलकातीं ॥
नित नव मिलन हित साज सजाती नित नव क्रीड़ा विपुल रचातीं ।
नित नवीन श्रृंगार धरा प्यारी को प्यारे के हिय को सरसातीं ॥
कभी प्यारी का मान बढाती कभी पिय से मनुहार करातीं ।
छिप जातीं नित प्रीति निशा में फिर भोर पुनः मुस्कातीं ॥
नन्हें शिशु सों भोले युगल हित प्रीति रीति नित नवल सिखातीं ।
नित रंग नवीन भरें ये नित नव रसपान करातीं ॥
छेड़ राग रागिनियाँ सुंदर मन माहीं उमंग सरसातीं ।
रास रंग की धूम मचातीं नित्य युगल को मोद करातीं ॥
गातीं देकर सुंदर तान करतीं नृत्य ललित ललाम ।
प्रेम सुवासित युगल हृदय को देतीं ये परम विश्राम ॥।
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