श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास
"नवल रूप नव रंग अति न्यारौ
गुरुस्वामि निरखि निरखि अनियारौ
माथै बेंदि कुच गरवा नैन कजरारौ
मधुराति रूप सुलोल जु देख्यो गजवदनि सांवरौ
श्रीहरिदासि रसभरि गजरा चूनरि कंगन नूपुर धारौ
देखि सखि चकित भई हा !स्यामा जु पुकारौ"
तमाल तले अति सुंदर रूप अनूप धारण किए श्रीस्वामी जु विराजित हैं।उनकी रूपमाधुरी का क्या बखान हो।श्रीराधा जु की चरणदासी गौरवर्णा चेहरे पर सूर्य के प्रताप को भी फीका कर देने वाली उज्ज्वल चमक और अति कोमल मंद मुस्कान लिए सुघड़ लाल अधर जैसे रस के प्याले।उनके गुलाबी कपोल जैसे रस टपकाते रसीले फल और ललाट पर बेंदी व माँग में सिंदूर अति मनमोहक कि कोई उपमा ही नहीं।बस यूँही जैसे कोई नवदुल्हिन सज संवर नवश्रृंगार किए विराजित अपने ही रस में मग्न सुंदरता की राशि आरसी में संग दुल्हे को निहारती कभी लजाती तो कभी मुस्काती हो।
सत्य तो बड़ा रोचक और मनभावक ही होता है ना।यह नवदुल्हिन वीणा की तारों पर प्रेमराग छेड़े जाने कब की खोई सी बैठीं हैं और समक्ष इनके जैसे अतिरस विभोर झाँकी प्रकाशित हो रही है।दासी के भरे भरे से नेत्र इनकी रूपछटा पर विमोहित हुए तनिक और रस में भीगने को आतुर हो चले।श्रीहरिदासि जहाँ अपने हृदय मंदिर में खुले नयनों से समक्ष उनकी प्रियाप्रियतम जु का रसपान निहार रहीं हैं वहीं यह दासी उनके खोए हुए नयनों में झाँकने का प्रयास करती अपने नयनों को सींचती व पवित्र कर रही है ताकि वह रूपझाँकी इसके पतित हृदय में हल्की सी भी तरंगायित हो सके।
श्रीस्वामिनी जु रसमुग्ध मधुर राग झन्कारों में तन्मय हैं और उनके मानस पटल पर अति सुंदर सलोने श्यामवर्ण श्री श्यामसुंदर जु अखियाँ मीचे सुकोमलतम वंशी की तान मिलाने के प्रयास में लीन एकराग हो रहे हैं।हाँ !यही तो छाए हैं इनके नयनों से सुरों में और सुरों से समक्ष रसीले श्यामसुंदर।
अहा !नाचते थिरकते पुष्पाविंत झालरों से घिरे सुमनसेज की सल पड़ी हुई सुंदर लताड़ी हुई रसकलियों की भरपूर महक में नीलाम्बर और पीताम्बर की उल्झन से थोड़ी ही दूरी पर एक कोने में अति सुंदर रस की ढरन भरन से रसमग्न रसभीने श्यामसुंदर !जिनके रूप की कोई उपमा नहीं।नीले आसमान सा निश्चल तन जिस पर निर्मलता ऐसी जैसे स्वयं श्यामा जु ही इस तन का वर्ण हैं।कोई आभूषण आभरण नहीं बस पीताम्बर रंग की ही धोती पहने ऊपर लाल कटिकसनी पर करधनी और गलमाल।बस यही मनमोहक अंगों की कांति को छुपाते रत्न और इनकी मुखकांति का क्या वर्णन करूँ।बस इतना ही कि नयन कटाक्ष में श्यामा जु अधर कपोल में रसवर्षिणी श्यामा जु ग्रीवा भुज वक्ष पर रस हर्षिणी श्यामा जु और चंचल अंग प्रत्यंग में रस सरसाती दामिनी सम श्यामा जु।अर्धखिले नयनों में नयनाभिराम रसरूपिणी श्यामा जु !नि:शब्द रस से सराबोर मुखकमल जैसे अभी अभी खिला हो और खिल कर तमाम मधुसूदन रसरंगमगे कमल सुरोजों को प्रकाशमय कर रहा हो और आतुरतावश उन रश्मियों की दमक से पता दे रहा हो अपने खिलाने वाली रविसम रूपराशि का।
जयजय श्यामाश्याम !!
क्रमशः
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