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कारी घटा आई चहुं दिसि , संगिनी जु

"कारी घटा आई चहुं दिसि तें कोयल करत पुकार
नन्ही नन्ही बूंदन बरखन लाग्यो रहे प्रेम पचिहार"

काली घटाएँ छाने लगती हैं और दमकती दामिनी घन की घणनघण घणघोर घटाओं को जैसे समेट रही हों अपनी चटकती सुनहरी तरंगायित होतीं भावलहरियों में।अति मधुर यह संदेस सखी को भाव विभोर कर देता है कि उसके नयनतारे श्रीयुगल निकुंज में एकरस में मग्न हुए मुग्ध हैं।वीणा और वंशी को वहीं छोड़ सखी अति अधीर निकुंज की तरफ अग्रसर होती है।नन्ही नन्ही बूँदें उसकी रति चिन्ह युक्त रसदेह का श्रृंगार कर रही हैं और वहीं दूसरी ओर श्यामसुंदर जु श्यामा जु का श्रृंगार अपने करकमलों से सहेजते हुए रसदेह से भिन्न कर रहे हैं।तन्मय युगल की सेवारत सहचरी सखियाँ व अति मदनभाव राग रागिनियाँ गहन रस बिखेर रही हैं।घन दामिनी जैसे अट्टहास परिहास करते एक होकर रस बरसा रहे हैं वैसे ही श्यामा श्यामसुंदर जु गहन निकुंज में रसलिप्त हैं।

सखी खुद को संभालती संवारती निकुंज के द्वार तक पहुँचती है और जैसे ही प्रवेश करती है तो देखती है कि श्यामा श्यामसुंदर जु यहाँ से भी प्रस्थान कर चुके हैं।श्यामा जु की रसपगी श्रृंगार सामग्री व चूनर वहीं सेज पर पड़ी है और संग उलझा हुआ श्यामसुंदर जु का उपरेना भी।कहीं वेणी से झड़े पुष्प तो कहीं पायल किंकणियों से उलझ कर नूपुर बिखरे हैं।यहीं बैठ युगल ने कुछ समय प्रेम परिहास करते बिताया होगा।छीना झपटी हुई होगी और श्रीयुगल रसदेह को संभालते संवारते यहाँ से रसकेलि में मुग्ध आगे बढ़ गए होंगे।उनकी चूड़ियों कुंडलों व पैंजनियों की रस झन्कारें अभी भी निकुंज में गूँज रही हैं और अंगिया चूनर व श्रृंगार रसदेह से विलग होकर भी श्यामा श्यामसुंदर जु के प्रेम के मधुर तराने सुना रहे हैं।रसीली छेड़न की किंकणी करधनी की खनक अति मधुर सुनाई आ रही है।

श्रीयुगल रसअकेलियाँ करते हुए निकुंज के दूसरे द्वार से पीछे बह रही यमुना जु के तट पर विहरन करते होंगे।यह जान सखी और विभोर हो उठती है।वह जानती है श्यामा श्यामसुंदर जु एकांत मदनरस में आकुल व्याकुल हुए कुंज निकुंजों में विहरण कर रहे हैं।

श्यामाश्याम जु के श्रृंगार विभूषण व अस्त व्यस्त छूटे पड़े वस्त्र यहां वहाँ पड़े देख सखी उन्हें सहेजती है और उनका अर्धचर्बित ताम्बूल भी उठा एक तरफ रखती है।उसके रोम रोम से श्यामा श्यामसुंदर जु की महक भर रही है जिससे मुग्ध हुई सखी वहीं बैठ युगल रस में डूबने लगती है।

क्रमशः
जयजय श्रीयुगल  !
जयजय वृंदावन  !!

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