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बदरा उमगि अँधेरी आई , संगिनी जु

"बदरा उमगि अधेरी आई बिजुरि चमक सोहायौ
गरजत गगन मृदंग बजावत चात्रक पीयु पिक गायो"

घणघोर काली घटाओं व चटकती बिजुरिया ने शांत भाव अपना लिया है।रस बूँदें थोड़ा छलक कर ही जैसे गहन होने के लिए रूक सी गई हैं पर सर्द हवाओं में मधुर रसझन्कारें अब कोकिल मयूर पिक शुक को रस से सराबोर करती किलकारियाँ भर उठी हैं।यमुना जु का वृंदुपवन अति सरस मंद राग छेड़े हरित हो झूमने लगा है और इनके संग संग झूम उठे सब वन्य व जल पक्षी।प्रियालाल जु निकुंज से यमुना तट पर विहरते हुए एक छोटी सी पर मनमोहक सुंदर नाव में विराजित हैं और उनके चरण यमुना जु के जल में नाव से नीचे लहराते हुए रस में खेल रहे हैं।मयूर मयूरी धरा पर जहाँ थम थम कर नृत्य कर रहे हैं वहीं जलतरंगों पर रसमुग्ध हंस हंसिनी रसक्रीड़ा कर रहे हैं।कोकिल शुक सारि श्रीयुगल जु के अति गहनरस व सरस प्रेम में पगे गीत गुनगुना रहे हैं।

पक्षियों की अति सुमधुर मन को मोह लेने वाली भाव प्रस्तुति जहाँ एक तरफ युगल को रस में नहला रही है वहीं यह वन्य जीव श्यामा श्यामसुंदर जु के आगमन से अत्यंत विभोर हो नाच रहे हैं।सखी इन कपोत चंद्रचकोर कोकिल पपीहे की पीयु पीयु वाणी से सुन संवरित होती है और स्पंदित हुई निकुंज से बाहर निकलती है।सुंदर राग रागिनियों व प्राकृतिक सौंदर्य माधुर्य में घिरे लिपटे श्रीयुगल उसकी दृष्टि में उतर चुके हैं।कब से जिन श्रीयुगल जु के प्रेम में विभोर सखी उनके चरणनखों की कांति पर मंत्रमुग्ध सी थिरकती हुई यहाँ तक आ पहुँची थी उसकी रसतृषा अब इन्हें देखते ही जैसे और तीव्र हो गई और दूर से ही बैठी अपने प्रियालाल जु के प्रेम में पगी अश्रु बहा रही है और उनके छुपा छुपी के खेल में जो उन्हें आनंद आ रहा उससे आनंदित होती बलाईयाँ लेती है।

श्रीयुगल झीने से अंगराग में लिपटी एक चुनरी में वहाँ विराजित हैं और श्यामा जु जैसे नज़र चुराती हुई सी बैठी हैं और श्यामसुंदर उन्हें अंक लगाने के लिए आतुर हुए उन पर ढुरक रहे हैं।उनकी रसदेहें रस से सराबोर नयनाभिराम झाँकी बनाए हुए अति मनमोहक लग रही हैं।सखी इन प्रेम रसमगी अद्भुत सुंदर नील व पीत कांति लिए एकरस होने का आतुर युगल को देख अपने नयनों की प्यास बुझाती नहीं अघाती।

क्रमशः
जयजय श्रीयुगल !
जयजय वृंदावन  !!

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