कीजे कृपा की कोर श्री राधे
हे प्रेम मूर्ति हे महाभाव सार विग्रह श्री राधिके नेक सी करुणामयी दृष्टि तनिक सी नेत्रों की कोर हम परम प्रेमविहीन जीवों पर डाल दीजिये । हे अद्भुत प्रेम स्वरूपिणी श्यामा हम पाषाण हृदय जीवों पर निज प्रेम का अणुमात्र छिटका दीजिये न स्वामिनी जू कि हम तुम्हारे हृदय रससार उस परम सुकोमल नील पुष्प को देखने की पात्रता पा जावें । देखो न स्वामिनी तुम्हारा हृदय पुष्प कितना कोमल है कि मात्र भाव से स्पर्श ही अधिकार उसका , परंतु भाव ही तो नहीं हम शुष्क हृदय प्राणियों में । हे अनन्त करुणागारा श्री स्वामिनी अपने प्रियतम के सुखार्थ हमें भी भावमय नेत्र प्रदान कर दीजिये न । हम प्रेम रहित प्राणी जब आपके जीवन रत्न को भावरहित नेत्रों से निहारते हैं तो आपको जिस कष्ट का अनुभव होता है वह केवल आप ही जानती हैं आपके प्राणों का वह पुष्प भी नहीं । हे स्वामिनी हम जीव नित ही आपके कष्ट का हेतु बनते हैं ॥ हे कृपार्णवा श्री राधिके हम जीवों पर प्रेमाणु छिटका कर आपके सुख का उपकरण बना लीजिये न । हे प्यारी जू जब हम जीव आपके प्रदत्त भावमय नेत्रों से आपके सर्वस्व को निरखेंगें तब हे रसमूर्ति श्यामा सर्वाधिक सुख आपको होगा ॥ हे ललिते निज महाभाव प्रेम सिंधु का अणु कर लीजिये न हमें कि आपको ही नेत्रों में भर आपके प्रियतम का रस दर्शन कर उनका रस अभिषेक करें नित । हमारे नेत्रों में बसकर श्यामा तुम ही तो निरखोगी न निज कनु को ॥
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