Skip to main content

बसुं तोरे नैनन में नन्दलाल , मृदुला जु

बसुँ तोरे नैनन में नंदलाल

बसुँ तोरे नैनन में नंदलाल कौन कह रहा ये विचित्र सी बात ॥ बसो मोरे नैनन में नंदलाल तो सुना है पर ये कि मैं तुम्हारे नैनों में बसुँ  ये कैसा भाव हुआ ! ये परम विचित्र भाव है श्री प्रिया का ॥ हाँ उन्हीं की भावना और नित्य स्थिती है यह ॥ आज की यह बात परम गूढ़ है संभवतः समझ पाना भी कठिन हो क्योंकि ठीक ठीक कहनी ही कठिन हो रही है ॥ श्री प्रिया ही श्यामसुन्दर का मूर्तिवान रसविग्रह मूर्तिवान सुख विग्रह हैं ॥ उनमें प्रियतम के सुख की अथाह अनन्य अद्वितीय प्यास है ॥ ये अनन्त प्यास स्वरूपा श्यामा ही प्रियतम के रोम रोम में समायी हुयीं हैं ।
हे प्यारे आपके नेत्रों में समा जाऊँ कि क्षणार्ध भर को भी आपके नेत्र रसपान से मुक्त न होवें ॥ आपके नेत्रों की दृश्य शक्ति हो आपको रस निमग्न रखूँ अनवरत ॥ हा प्राण प्रियतम तुम्हारे नयनों में भरी बस वो दिखाती रहूं जो तुम्हें सुख दे ।प्यारे तुम्हारे कर्ण पटु में समा जाऊँ कि ये नित्य उस मधुर रस शब्द को सुनने में लीन रहवें जो तुम्हारे हृदय को आनन्द से भर देते हैं ॥ प्यारे तुम्हारी नासिका में समा उस रस सुगंध तुममें भरती रहूँ  जिससे तुम परम सुख पाते रहो ॥ तुम्हारी रसना में मैं ही बसी रहुँ और तुम्हें अखंड रसपान करवाती रहूँ ॥तुम्हारे रोम रोम में समा जाऊँ और हर रोम से तुम्हें मधुर स्पर्श सुख का अखंड रसभोग कराती रहूँ ॥प्यारे तुम्हारे चित्त में वृत्ति बन तुम्हारे मन और हृदय में अनन्त रस लालसायें बन बहती रहूँ कि तुम पल भर भी इन कामनाओं से मुक्त न हो सको और दिन रैन अहिर्निश रस निमग्न ही रहो ॥

ये प्यास जो श्यामसुन्दर के नेत्रों में समायी हुयी है वह रस प्यास वस्तुतः श्यामा ही तो हैं जो प्रिय सुखार्थ नेत्रों में समा उन्हें रसपान पृवत्त रखतीं हैं ॥ क्या केवल नेत्रों में नहीं नहीं प्रत्येक इंद्रिय में वही समायी हुयी हैं और प्यारे को प्रत्येक इंद्रिय से रसलीन रखती हैं ॥ श्याम के सुख की प्यास के फलस्वरूप ही वे उनकी इंद्रिय को रस में डुबाये रखतीं हैं ॥ तो क्या केवल इंद्रियों में समायी हैं वे , नहीं नहीं इंद्रियों में ही नहीं वे ही उनके भीतर उनकी चित्त वृत्ति हो , कामनाओं का अगाध अनन्त सिंधु हो लहरातीं रहतीं हैं ॥ श्यामसुन्दर के मन में हृदय में कामनाओं का बीज स्वरूप भी वही प्रिय सुख लोभी हैं ॥ नित्य नवीन कामनाओं लालसाओं वांछाओं का मूल उद्गम यही तो हैं ॥ ये कामना रूपी श्यामा ही तो प्यारे को सदैव रसपान हित लालायित रखतीं हैं

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...