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कदा करिष्यसि मां कृपा कटाक्ष भाजनम् , मृदुला जु

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्

आज श्री कीर्ति कुमारी के मुखमंडल पर कुछ उदासी सी छायी देखकर वृषभानु बाबा अति लाड से पूछ रहे हैं लली का भयो है । आज तोरे मुख पर चिंता क्यों दीख रही है लाडो ॥ बाबा मन में कछु व्यथा सी हो रही है ॥ क्या बात हुयी लाडो ॥ बाबा , नन्द बाबा नित्य प्रति नन्द महल से कृष्ण रस को वितरण करें हैं ॥ पुकार पुकार बुलाते हैं कि कृष्ण रस पालो ॥ बाबा दूर दूर से अनेक लोग नित्य अपने अपने पात्र लेकर बाबा के द्वार पर पहुँचते हैं ॥ बाबा बडी उदारता से कृष्ण रस वितरित करते हैं परंतु उन सभी लोगन के पास जो पात्र होवे हैं वे या तो टूटे फूटे होवें हैं या उनमें छिद्र होवें हैं ॥ कुछ के पात्र ही मलिन होवे तो कोई रिक्त हाथ बिना पात्र ही रस लेने पहुँच जावें हैं ॥ याते ते उन सबन को जो रस मिले वो सबरा बह जावे व्यर्थ चलो जावे ॥ या ते सब बडे दुखी होवें हैं । मो से उन दुखी हृदयों का दुख देखा नहीं जाता ॥ तो लली तू क्या चाहवे है बता क्या करुँ तोरे सुख हित ॥ बाबा मेरो मन करे कि रस तो नन्द भवन से बटे है पर रस कू लेने को पात्र हमारे यहाँ से बांट देवें तो ॥ प्रति दिन हम बाबा के रस बाँटने से पहले यदि हम सबन रस याचक को पात्र बांट दिया करें ॥ आहा लली तू बडों ही सुंदर बात कही । अबसे रस नन्द भवन से बटेगो और रस को पात्र हमारे यहाँ से बटेगो ॥

हाँ यही तो सार है तत्व है कृष्ण रस चाहिये जीव को पर पात्र नहीं उसके पास तो पात्र देने वाली अर्थात् पात्रता देने वाली श्री वृषभानुनंदिनी ही हैं ॥ श्री किशोरी ही कृपा कर जीव को वह पात्रता प्रदान करतीं हैं अपनी परम करुणा के कारण जिसमें कृष्ण रस ठहर सकता है ॥ यह उन परम करुणावरुणालया की परम अहेतु की करुणा ही तो है जो जीव पर जो वे नित्य कृष्ण रस हेतु पात्रता दे रहीं हैं ॥ सो उन्हीं अनन्त करुणा सिंधु कृपा स्वरूपिणी श्री राधिका के श्री चरण कमलों में नित्य यही प्रार्थना है कि "कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् "॥

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