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वृंदावन कौ रसमय वैभव पहिलैं सबनि सुनायौ , संगिनी जु

"वृंदावन कौ रसमय वैभव पहिलैं सबनि सुनायौ
ताकि पाछैं औरनि कछु पायौ सो रस सबनि चखायौ"

श्रीयुगल रसमगे रतिरस से विभोर सखियों का रसभावपूर्ण तरंगों से हिलेमिले हुए एकरस एकस्वरूप हो चुके हैं यथासंगति एक एक सखी श्यामा जु में सम्माहित होकर श्यामसुंदर जु के रस में तल्लीन हो चुकी है।नील पीतवर्ण युगल जोड़ी एकभाव से उपजी और एक ही भाव में विलीन हुई सखियों के मनोभावों से रसलिप्त हुई एक कमलदल पर विराजमान है।

संगीत की अति सुकोमल मंद सहलाती हुई सी तरंगें श्रीयुगल को सुख प्रदान कर रही हैं।जैसे सब एकभाव हो चुका।वेणु वीणा रति रस प्रेम सखी श्यामा और श्यामसुंदर।कभी विभिन्न हुए अभिन्न रसयुक्त प्रेमी नाचते थिरकते स्पंदित सिहरते फिर से समा गए रसमद रस में ही।

जैसे स्वयंचित्त पूर्णकाम श्यामसुंदर जु ने स्वयं की रूपमाधुरी से आसक्त हो स्वयं को प्रकटाया और उसी स्वयं की रसछवि से गहन प्रेम कर उसे रस से सराबोर कर फिर स्वयं वही रस पिया भी और उसे स्वयं में भरा रस के विभिन्न भावों का भावालिंगन करते हुए तो यहाँ कोई दूसरा था ही नहीं कभी।श्यामसुंदर ही श्रीयुगल और श्रीयुगल ही श्यामा जु।सहचरी भावापन सखियाँ उनकी विभिन्न रस चेष्टाएँ स्वरस पिपासु प्रेममय मदन में तत्सुख भाव लिए स्पंदन बन उभरी और शांत हो गईं।

अद्भुत रसविलास जहाँ काम नहीं केवल प्रेम है।काम तो पल दो पल में हार मान जाता है और कभी तृप्त ना होता।पर भावजगत का काम प्रेम है जो रस से उपजता और रस में ही लीन होता।जहाँ काल वय का कोई बंधन नहीं।देहधारी प्रेम नहीं।केवल चिन्मयता और चिन्मय प्रेम जो सदैव रसभीना मंद संगीतगान करता आनंद से सराबोर एकरस में सदा नवरस लिए झूमता गाता और सुखदान ही करता रहता जिसमें फलस्वरूप तृप्ति भी तत्सुख से ही संतुष्ट व संतुलित रहती।सखी के नयनों का सुख श्यामा श्यामसुंदर जु का एकरूप सदा से।

जयजय श्रीयुगल  !
जयजय वृंदावन  !!
      
          🙏🏻💐"श्रीहरिदास"💐🙏🏻

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