"इक हित द्वै बिनु होते नहिं दोऊ मिलि इक होइ
विवस एक हित जानियैं चेतन इक तें होइ"
सखी श्रीयुगल चरणों में ध्यान लगाए उनके कमलपद पाद्दों को भावमई सहलाती है।अति रतिरस से वियुक्त हुए श्यामा श्यामसुंदर जु नयन से नयन मिलाए हुए हैं और प्रत्येक अंग परस्पर अंगों को स्पर्श किए हुए है।मद्धम सुरताल छेड़े हुए सखियाँ युगल रसमई जोड़ी को निरख अति विभोर हुई हैं।
संगीतमय और कोक कला में विलक्षण सुरतकेलि में सहचरी भावापन सखियाँ निपुण श्यामा जु की देह का रसश्रृंगार करना आरम्भ करती हैं।एक तरफ जहाँ श्यामा जु रसविगलित हुईं श्यामसुंदर जु के अंक में समा रहीं हैं वहीं सखी संगिनियाँ एक एक कर थिरकती हुईं मंद चाल से उनके रसअंगों में सम्माहित हो रही हैं।श्यामसुंदर जु प्रिया जु की रसदेह पर विहरन करते सखियों के रसभावों का आलिंगन कर रहे हैं।श्रीयुगल जो तत्सुख भावापन सखियों की मधुर व अति सुकोमलतम भाव भंगिमाओं का सन्मान करते रसविलास में डूबे हुए हैं उसमें प्रियालाल जु सुख पा रहे हैं और परस्पर सुखानुदान कर रहे हैं।सखियों के अतिरस से श्रीयुगल पूर्ण रात्रि कमलदलों से घिरी निकुंजरूपी नौका में यूँ बिताते हैं जैसे उन्हें बोध नहीं काल का क्यों कि उनका यह विशुद्ध प्रेम विलास कोई मदनविलास नहीं अपितु रसविलास है जिसमें प्रेमी श्यामसुंदर प्रेम सखियों से घिरे प्रेम की अद्भुत सुंदर रससंगिनी को आलिंगन किए हुए हैं।यह रससंगिनी चिरसंगिनी सदैव से उनकी ही भावभीनी एक रसलहरी है जिसे स्वयं प्रकटाए श्यामसुंदर स्वयं रसातुर हुए प्रेम कर रहे हैं।श्यामा जु के मनोहर कटाक्ष व भृकुटियों का संचालन उनकी अंतरंग भावनाएँ जो उनकी विभिन्न भावभंगिमाओं से उज्ज्वलित प्रकाशित होतीं हैं उनसे प्रेम विवर्त वैचित्र्य भावपूर्ण श्रीयुगल सदैव रसमय रहते हैं।
सखी यह सब युगल चरणों में तन्मय अपलक निहार रही है और क्षणप्रतिक्षण युगल सेवा का भाव जैसे जैसे गहराता है वैसे वैसे सहचरी मधूकर श्यामसुंदर जु को रस प्रदान करने हेतु श्यामा जु को रसाप्लावित करती उन्हें तरंगायित होते देख विभोर हो रही है।
क्रमशः
जयजय श्रीयुगल !
जयजय वृंदावन !!
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