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मेहँदी सेवा , मृदुला जु

मेहंदी सेवा

सखि री मन की चाह कैसे पूरी होवे ॥ आज मन माहि बडो ही विकलता हो रही ॥क्या तू मो पे नेक सी कृपा करेगी प्यारी ॥ वे तो मोहे ये करने ही नाय देंगे री ॥पर जो तू ये कर पायी तो मेरे ये प्राण परम शीतल हो जावेंगें । बडों ही उपकार मानुंगी तेरो ॥ निकुंज के एकान्त में विराजमान श्री प्रिया आज सन्मुख बैठी सखी से बार बार विकल होकर कह रहीं हैं ॥ उनके नेत्रों से बहती अश्रुधारा सखि के प्राणों को प्रेम में बहा कर सुधि बुधि खो देने को  व्याकुल कियों जा रही है पर प्यारी की सेवा भावना उसे सचेत किये हुये है ॥ आदेश करो न लाडिली , किंकरी हूँ आपकी प्यारी जू जो चाहोगी सो ही करुंगी ॥ तो हे प्यारी सखि मोय आज उनकी सेवा करने दे न ॥उनके सुकोमल चरणों में आज मेहंदी सजानो है मोय ॥ तुम सखियाँ तो नित्य ही सेवा पाओ हो वा की आज नेक सी मोहे भी दे दो न ॥ निज करों से सुंदर मेहंदी पीसुंगी निज हृदय रस मिलाय मिलाय वा को सुवासित करुंगी फिर अपने ही करों से प्रियतम के सुकुमार चरण पल्लवों में निवेदित करुंगी ॥ सखि री करने दो न मोहे , कर दो न इतनो सो उपकार अपनी सखी पर ॥ हाय ! प्यारी जू आप अपने इन परम सुकोमल करों से मेहंदी पीसोगी , हाय प्यारी जू हम कैसै सह पावेंगी ये ॥ हम सखियों के प्राण कैसे आपको यूं देख देह में कैसै रह पावेंगे । ना री प्यारी ऐसा करके तू मोहे अपार सुख देवेगी । मना ना कर मेरी प्यारी ॥ प्यारी जू को यूं विकल होता देख सखि मान जाती है और समस्त सामग्री प्रिया जू की सेवा में उपस्थित कर देती है ॥ लाडली आज स्वयं अपने करों से मेहंदी तैयार कर रहीं हैं ॥ अति प्रेम से विह्वल हो नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही है जो उस मेहंदी में समाती जा रही है ॥ सखि पास ही खडी खडी स्वामिनी की यह प्रेम दशा देख मोहित सी हुयी जा रही है । उसकी देह में प्रेम से कंपन हो रहा ॥ नेत्रों से प्रेमाश्रु बह कर वस्त्र भिगो रहें हैं ॥इधर श्री प्रिया प्रियतम की सेवा के परम प्रेममय उत्साह से भावित हुयी अपने प्राण हृदय सर्वस्व उस मेहंदी में मिलातीं जा रहीं हैं ॥ उनके करों का स्पर्श पाकर वह भावमय मेहंदी भी महाभाव से युक्त हो गयी है ॥  उससे महकती सुगंध अब कोई दिव्य पदार्थों की दिव्य सुगंध ही मात्र नहीं वरन महाभाव का ही गंध स्वरूप हो चुकी है ॥ श्री प्रिया के अनन्त प्रेम भाव से युक्त वह मेहंदी क्या केवल मेहंदी मात्र है अब ॥ सेवा सामग्री पूर्ण तैयार हो चुकी है ॥ निकुंज में प्रियतम भी पधार चुके हैं पर प्रिया को वहाँ न पाकर अधीर हुये जा रहे हैं ॥ कहाँ हैं आज लाडिली , सखियों कहाँ छिपा दिया आज मेरी प्राणमणि को ॥ बुलाओ ना उन्हें कि इतने में श्री प्रिया की अंग सुगंध ने मधुर नूपुरों की झनकार ने प्रिया के आने की सूचना दे प्रियतम का विरहताप हर लीना ॥ मंद मंद मुस्कुरातीं प्रियतम के चित्त का हरण करतीं रस स्वामिनी प्रियतम के निकट आ गयीं ॥ प्यारे जू एक विनती करुं तो मानोगे ॥ प्रिया को यूं नेत्रों में जल भर निवेदन करता देख लाल जू के  प्राण विदिर्ण हो उठे ॥ प्यारी सर्वरूप सर्वविध आपका ही दास हूँ फिर आज ऐसा व्यवहार क्यों ॥ तो सच कहो मना तो नाय करोगे न । प्यारी को खींच हृदय से लगा लिया प्रियतम ने ॥ ना प्यारी जू जैसा तुम चाहो वैसो ही करुंगो ॥ तो आज निज चरणों में मेहंदी निवेदित करने दो न मोहे ॥ आह प्यारी जू मम् स्वामिनी ये कैसै कर पाउंगों ॥ मोहे पता था ऐसो ही कहोगे नेत्रों में अश्रु भर दृष्टि नीचीं कर लीनीं  लाडली ॥।इस अवस्था में प्यारी को देख ना सके प्रियतम हंसकर बोले अच्छा बताओ पहले कौनसा चरण धरुं आगे ॥ सुनते ही लाडली का रोम रोम प्रफुल्लित हो उठा ॥ आहा ...तुम कितने अच्छे हो सच ॥ निज अंक में प्रियतम के चरण धर लाडली अपलक निहार रहीं हैं उन सुकुमार चरण पल्लवों को ॥ हृदय मन प्राण सर्वस्व उन ललित चरणों में समा जाने को आकुल ॥ अपने करों से जैसै ही नेक सो मेहंदी प्रियतम के चरणाग्र पर स्पर्श किया प्रियतम के रोम रोम में कंपन होने लगा है ॥ ऐसा लग रहा कि मेहंदी नहीं अपितु उनकी प्रिया ही मेहंदी रूप हो उनके चरणों में समर्पित हो रही ॥ लग रहा कि इस प्रेम के महासिंधु में ही उनका समग्र अस्तित्व डूब जावेगा ॥प्रिया  ....प्रिया.... हृदय मन प्राण सब जैसै प्रिया रूप होने लगें हैं ॥ रसराज महाभाव में समा जाने को व्याकुल ॥ उधर प्रिया भी प्रियतम के चरणों में मेहंदी नहीं वरन स्वयं को ही तो सजा रहीं हैं ॥ प्रियतम ..... प्रियतम .....लग रहा कि मेहंदी लगाते लगाते भाव सिंधु में डूब स्वयं ही प्रियतम होतीं जा रहीं हैं ॥महाभाव रसराज में परिणित होने को तत्पर ॥ दो रस के अगाध सिंधु प्रेम के अनन्त सागर परस्पर मिल परस्पर ही होते जा रहें हैं ॥ पता ही नहीं अब कि कौन प्रिया और कौन प्रियतम ॥ महाआश्चर्य आहा .....देखो तो तनिक , प्रियतम सजा रहें हैं मेहंदी अब प्रिया चरणों में ॥ प्रिया चरण धरें हैं प्रियतम अंक में ॥ महाभाव के महासिंधुओं के रूप ही परस्पर परिवर्तित हो चुके हैं ॥ जहाँ कुछ क्षण पूर्व प्रियतम थे वहाँ अब प्रिया हैं और जहाँ प्रिया थीं वहाँ प्रियतम विराज रहे हैं परम अद्भुत स्वरूप .......परम अद्भुत प्रेम ....परम अद्भुत सेवा परस्पर की ॥

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