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सरस प्रसंग मर्म 2 , मृदुला जु

सरस प्रसंग मर्म

पूर्व भाग में हमनें श्री नन्दनंदन के दर्शनार्थ आये मयूर पर श्री जी की अति कृपा का प्रसंग पढा ॥ वास्तव में यह केवल उस मयूर की कथा नहीं है वरन ये प्रत्येक कृष्ण दर्शनाभिलाषी जीव की कथा है ॥ जन्म जन्म के पुण्यों के फलस्वरूप किसी बिरले सौभाग्यशाली जीव के हृदय में श्री कृष्ण विषयक रुची का उदय होता है ॥ यही बीज रूपी रुची अनुकूलता प्राप्त होने पर अंकुरित हो वृद्धि को प्राप्त होती है ॥ जीव के हृदय में श्री कृष्ण दर्शन लालसा के रूप में विकसित हो जाती है ॥ लालसा अति प्रगाढ़ होने पर वह किसी भी प्रकार नंदनंदन के दर्शन पाने को व्याकुल हो उठता है ॥ यही मयूर का व्याकुल होना है ॥ जीव विरहानल में हा कृष्ण हा कृष्ण पुकार करता है ॥ परंतु नंदनंदन उसे दर्शनों से वंचित ही रखते हैं ॥।विरहानल में बहे अश्रुओं से चित्त का समस्त कलुष धुल जाता है ॥परंतु अभी उसे नंदनंदन के दर्शनों की उनके सान्निध्य की पात्रता नहीं मिली है ॥ यह पात्रता है भाव जो केवल भावप्रदायिनी श्री वृषभानुनंदिनी की कृपा कोर से ही प्राप्त होती है ॥ यद्दपि जीव हृदय में पूर्व उदित रुचि तथा दर्शन लालसा भी श्री कृपा का ही परिणाम होता है परंतु वह भाव के लिये भूमि तैयार करने हित होती है , पात्रता तो भाव ही है ॥ तो जब रोते रोते समग्र चित्त की मलिनता कलुषता धुल जाती है तब वे परम करुणावरुणालया अकारणकरुणेश्वरी श्री राधिका जीव पर अनुग्रह कर भाव प्रदान करने को तत्पर हो उठतीं हैं ॥ उन्हीं की प्रेरणा से कोई सखी उस मयूर रूपी जी को बरसाने ले जाती है और श्री राधा चरणों में अर्पित कर देती है ॥ यह श्री राधिका की अपूर्व कृपा से ही घटित होती है ॥ बरसाने पहुँच कर श्री कुंवरी का स्नेह पाने से तात्पर्य भाव की प्राप्ति होने से है ॥ महाभाविनी की कृपा कणिका से हृदय में उदित भाव ही तो उन योगीजनदुर्लभ श्री नंदकिशोर की सहज प्राप्ति का सहज साधन है ॥भाव पा जीव रूपी मयूर भावविभोर हो उठता है ॥ अब वह सर्वत्र राधा राधा ही पुकारता है ॥ जीव का राधा राधा पुकारना ही उसका राधा कृपासमन्वित होना है ॥ बस इसी की तो प्रतिक्षा थी उन भाव तृषित नंदकिशोर को ॥ जीव रूपी मयूर को श्री जी कृपापात्र पाकर वे सहज ही उस मयूर को अपनाने के लिये अधीर हो उठते हैं  ॥ जो नवल नागर दर्शन भी न दे रहे थे अब वही उस भावसंपन्न जीव के पाछें पाछें प्रेम विवश से हुये फिर रहे हैं ॥ यही महिमा है उन सर्वेश्वरी कृष्णाकर्षणेश्वरी भुवनमोहनमोहनी रासेश्वरी रसेश्वरी रसिकेश्वरी श्री राधिका महारानी जू की ॥

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