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श्यामसुंदर का वेणु वादन , अमिता बाँवरी जु

श्यामसुंदर का वेणु वादन
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प्रियतम ने वेणु नाद छेड़ दिया है, जैसे ही यह प्यारी जु के कर्णपुटों को स्पर्श हुआ हृदय में प्रेम तरंग हिलोरे लेने लगी। श्री प्रिया एकदम व्याकुल हो उस ओर भाग उठी जहाँ उसे अपने प्रियतम की वंशी की ध्वनि सुन रही है। स्वयम ही तो श्री प्रिया के हृदय ने प्रियतम को निमंत्रण दिया था मोहना रे ! छेड़ मुरली की तान.....। अब वही तान में अपना सुन श्री प्रिया दौड़ पड़ी है अपने प्यारे प्रियतम की और, अपने आतुर नेत्रों से अपने प्राणधन की खोज में। अहा ! प्रियतम की वेणु तो राधा राधा राधा ....पुकार रही है तो किस प्रकार श्री प्रिया अपने प्रियतम की पुकार सुन धीर धर सकती है।

    दूर से निहार रही है अपने प्राणधन श्री प्रियतम जो यमुना पुलिन पर कदम्ब के तले अपनी ललित त्रिभंगी मुद्रा में निमीलित नेत्र कर अधरों पर वेणु रख अपनी प्राणसंगिनी को पुकार रहे हैं। सहसा वहीं रुक जाती है कहीं मेरी पायल के घुँघरू प्रियतम के आनन्द को भंग न करें। कहीं बढ़ी हुई स्वासों की हलचल से प्रियतम के आनन्द में विक्षेप न हो। आज श्री प्रिया अपने नेत्रों से ही जैसे प्रियतम की छवि का पान करना चाहती है। दूरी से ही उन्हें निहार रही है। प्रियतम का हृदय सदैव एक ही नाम पुकारता है राधा राधा राधा ..... यही नाम प्रियतम वंशी में भर भर सम्पूर्ण सृष्टि में आनन्द भर रहे हैं । श्री प्रिया की व्याकुलता बढ़ती जा रही है वहीं श्री प्रिया अपने प्रियतम के इस आनन्द में कोई विक्षेप भी नहीं डालना चाहती। श्री प्रिया के नेत्र बन्द होने लगते हैं । कर्णपुटों से एक ही नाम भीतर जा रहा है राधा राधा राधा .... परन्तु वह नाम हृदय में समाकर मुख से निकल रहा है श्याम......सुंदर। जैसे जैसे राधा राधा नाम सुनती जा रही है व्याकुलता बढ़ कर अपने प्रियतम का नाम लेती जा रही है , जैसे अब और रुका नहीं जा रहा श्री प्रिया से । नेत्रों में प्रियतम की छवि भरती जा रही है और मुख से नाम निकलता है श्यामसुंदर और श्री प्रिया मूर्छित हो वहीं गिर जाती है। श्री प्रिया देह से तो मूर्छित हो गई है परंतु उसके नेत्रों से जो प्रियतम की रूप राशि भीतर उतर चुकी है हृदय की गहराई में अपने प्रियतम के संग मूक मिलन में ही लीन हो चुकी है। धीरे धीरे चेतना लौटती है और अधरों पर एक ही नाम है श्याम....सुंदर श्याम ....सुंदर श्याम.......

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