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निकुंज लीला में सखी , मृदुला जु

निकुंज लीला में सखी

बडों ही निगूढ़ तत्व है सखी ॥ कहते ही नहीं बनता ॥ कहत कठिन समझत कठिन ॥ युगल का हृदय तत्व है सखि ॥ जितना बूझो उतना गहरा ॥ श्यामसुन्दर के सुख की महान तृषा हैं सखियाँ ॥ प्रिया की अपार सेवा लालसा हैं  सखियाँ ॥ प्रिया के रोम रोम में समायी लाल जू के सुख की अनन्त वांछायें हैं सखियाँ ॥ लाल जू सुख सिंधु में डूबें रहें नित्य इन  कामनाओं की ही जीवंत मूर्तियाँ हैं सखियाँ ॥ लाल जू के नेत्रों की, अधरों की ,प्राणों की रोम रोम, की अपार रस तृषा हैं सखियाँ ॥ प्यारे की सुख की कभी न बुझने वाली उत्कट लालसा हैं सखियाँ ॥ लाल जू के रोम रोम की छुअन हैं सखियाँ ॥ प्रियतम के रसपगे नयनों के गहन रस रहस्य हैं सखियाँ ॥ प्रिया के रस में डूबे रहने की गहन कामनाएँ हैं सखियाँ ॥ रोम रोम की थिरकन हैं सखियाँ ॥प्यारे के सुखार्थ उन्हें नचाती हैं ये सखियाँ ॥ ऐसे निहारो न लाडली को ऐसे , ऐसे स्पर्श करों न उनका ,ऐसे हृदय लगाओ न उन्हें , ऐसे रसपान करो न ऐसे ऐसे ऐसे ........॥ आह प्यारे ही डूबे रहो न ॥ बाहर  से नहीं भीतर से यह सेवा ॥ तो नेत्रों में समा वही तो निहार भी रही प्रियतम सुखार्थ ॥ रोम रोम की छुअन बन खेल रही वह ॥ऐसे ही प्यारी की लाल जू को सुखदान की अनन्त लालसायें उन्हें रस सिक्त करती रहतीं बाहर भीतर ॥अंतरंग सेवा सखियों की प्यारी जू के रूप में लाल जू के सुख को बढाते रहने की ॥ नित्य नवीन श्रृंगार, नित्य नवीन चितवन, नित्य नवीन छटा, नित्य नवीन रस केलि नित्य नवीन मादकता, मोहकता ॥ प्रिया के रोम रोम में समा प्रियतम को रस के लिये ललचातीं उमड़ती घुमडती ॥ डूबने लगें रस जडता में तो पुनः पुनः रस पृवृत्त करतीं ॥ प्रेम रस सिंधुओं की लहरें हैं ये सखियाँ ॥ प्रिया लाल की रसमयी चेष्टायें हैं सखियाँ ॥ कहाँ तक कहा जावे इन रस वृत्तियों का स्वरूप ॥ जितना जितना सुख पाते युगल उतना उतना प्यास बढती जाती इनकी ॥ और मधुर और मधुर और मधुर ......सदा माधुर्य की ओर प्रवाहित होतीं रहतीं ये रस मालिकायें ॥ केली का सौंदर्य माधुर्य वर्धित करतीं सदा ॥ प्रिया का रूप सौंदर्य प्रिया की अंग सुगंध रोम रोम के रस भंवर, मान, मद, चातुरी, विवेक,  कोक कला की अनन्त मधुरिमा,  प्रिया के वसन भूषण, अनन्त रस युक्तियाँ, मधुर, तीक्ष्ण, कटु आदि समस्त रस हैं ये सखियाँ ॥ कहीं नूपुरों की मधुर झनकार हैं तो कहीं किंकणी की रस ध्वनियाँ  कहीं तिरछी चितवन हैं तो कहीं मधुर मान हैं सखियाँ ॥ कभी प्रेम रोष हैं तो कभी पूर्णतम् समर्पण हैं ॥कभी रस वर्धन हित परम अबोधता तो कभी सुविवेक हैं सखियाँ ॥ कहीं सुकोमलता तो कहीं अति लावण्य हैं ॥ कहीं अधरों की लालिमा तो कहीं केशों की स्निग्धता हैं सखियाँ ॥ अनन्त रुपा अनन्त सखियाँ युगल रस विलास की अनन्त उर्मियाँ, परंतु हृदय पिपासा एक युगल सुख ॥ वही जीवन संजीवनी इनकी ॥ युगल भी इन्हीं के रस भावों में लहराते प्रेमरस धारा के तटों से मध्य की ओर और पुनः पुनः मध्य से तटों की ओर विहरते रहते ॥ शांत रस सागर की चंचल उत्ताल लहरें हैं सखियाँ ॥

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