युगल रस अनुभूति (सहचरी भाव)
सब कहते है न कि प्रियतम के रोम रोम से सदा प्रिया का और प्रिया के रोम रोम से सदा प्रियतम का नाम सुनाई पडता है ॥ परंतु सखी युगल के विग्रहों से सदैव युगल नाम झंकृत होता ॥।जब प्रिया कहती प्रियतम तो उनके हृदय में समाये प्रियतम कह उठते प्यारी और फिर उन हृदय वासी प्रियतम के हृदय में विराजमान प्रिया कहतीं प्रियतम तो पुनः उनकी हृदयस्थ प्रियतम कहते प्यारी ॥।यूँ श्री प्रिया की दिव्य देह से सदा युगल नाम महकता क्योंकि प्यारी जु में केवल प्यारी जु ही ना है री । इसी प्रकार जब श्यामसुन्दर कहते प्यारी तो हृदयस्थ प्रिया कहतीं प्रियतम और फिर उनके हृदयवासी प्रियतम कहते प्यारी तो पुनःउनकी हृदय वासिनी कह उठतीं प्रियतम । क्योंकि प्यारे जु में केवल प्यारे जु ही ना है री । बस इसी प्रकार श्यामसुन्दर में से भी सदा युगल नाम झंकृत होता ॥ दोनों के ही रोम रोम नित्य कहते
प्रियाप्रियतम प्रियाप्रियतम प्रियाप्रियतम प्रियाप्रियतम ......॥
स्यामासुन्दर स्यामासुन्दर स्यामासुन्दर स्यामासुन्दर स्यामासुन्दर .....।।
राधामाधव राधामाधव राधामाधव राधामाधव राधामाधव राधामाधव ।।
यह न सुनी तो यह तो सुनी है री तू ... हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्णकृष्ण हरेहरे ।
दोनो पृथक होवें तो अलग अलग एक दूसरे का नाम उच्चारें परंतु जब दोनों में दोनों ही पूर्ण तो नाम एक एक का कैसै ॥ नाम भी अलग अलग नहीं पुकार सकते ये परस्पर ॥ युगल नित्य युगल ही हैं ॥ उनकी प्रत्येक चेष्टा युगलत्व में ही निहित है ॥ तृषित ।।
जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।।
Comments
Post a Comment