निकुंज सेज पर अति गहन आलिंगन में आबद्ध युगल ॥ परस्पर मिलित अंग प्रत्यंग ॥ रस में डूबे परस्पर के अपार सुख सार से ये युगल पुष्प ॥ रसजडता में प्रवेश करने को तत्पर से । डूबने अथाह रस सिंधु में कि कोई सहचरी सहसा नुपुर हो झंकृत हो उठी प्रिया चरणों में ॥ आहा कैसा मधुर स्वर ॥ जैसै डूबते को तिनके का सहारा मिल गया ॥ रस सिंधु में डूबने ही जा रहे श्यामसुन्दर को उस रसमयी मधुर झंकार ने पुनः रसपान में पृवत्त् कर दीना ॥।ऐसे ही न जाने कितनी सहचरियाँ नित्य युगल की रसकेलि में बारम्बार उन्हें रसजडता से उबारती रहतीं हैं ॥ कभी श्री प्रिया के नकबेसर का मोती सहसा हिल उठता है तो कभी कर की किंकणी स्वरित हो जाती है ॥ कभी प्रिया नेत्रों में कोई अर्थपूर्ण तरंग बन प्रियतम चित्त को हर लेतीं हैं तो कभी स्वेद अणु बन बिखर जातीं हैं ॥ श्री प्रिया के दिव्य मनोहर अंगों पर छटा बनकर उदित होती रहतीं हैं ये ॥। दोनो डूबते रसातुरों को रसास्वादन के हित पृवत्त रखना ही तो सेवा इनकी ॥ यदि ये सहचरियाँ प्रिया प्रियतम के रस में डूबकर सेवा भूल जावें तो दोनों रसपथिक रसजडता को प्राप्त हो जावेंगें ॥ रस जडता में निमग्न होने पर लीला कैसै घटेगी परस्पर रसपान कैसै कर पायेंगे दोनों ॥ तो इसी हेतु ये रसमयी सहचरियाँ सदा युगल एकांत केलि में भी सहयोगी रहतीं हैं ॥ रस मे डूब सुधि बुधि खोने को आतुर युगल को संभाले रहतीं हैं कि रसभोग बना रहे उनका ॥
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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