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प्रियतम का चित्रपट , अमिता बाँवरी

प्रियतम का चित्रपट
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प्यारी जु एकांत में बैठी है, उनकी दृष्टि प्रियतम के चित्रपट पर जाती है। हर ओर से शून्य होकर जैसे सम्पूर्ण चेतना से प्रियतम की छवि को ही निहारने लगती है। प्यारी जु के नयन प्रियतम के नयनों से मिलते हैं , छवि में ही प्यारी जु ने प्रियतम के नेत्रों की अतृप्ति को देख लिया जैसे। कुछ क्षण उनके नेत्र प्रियतम की छवि में नेत्रों पर ही टिके हुए हैं, सहसा ही अधरों पर मृदुल हंसी खिल जाती है और अपने नेत्र झुका लेती है।पुनः नेत्र उठाती है तो लगता है जैसे प्रियतम के नेत्र कुछ चंचल हो गए हैं। अपने नेत्र झुका कर संकुचित सी होने लगती है और नीचे देखने लगती है। हृदय में तो प्रेम तरँगायित हो रहा है तो नेत्र कैसे स्थिर रह सकते हैं , पुनः नेत्र उठाती है कुछ क्षण प्रियतम के नेत्रों में निहार मृदुल हंसी बिखेरती हुई पुनः झुका लेती है। नेत्रों का खेल ज्यूँ ज्यूँ आगे बढ़ रहा है प्यारी जु के हृदय में और भी प्रेम तरँगायित होने लगता है। मुख से बोलने का प्रयत्न करती है श्याम.. .......परन्तु अधरों से पूरा नाम उच्चारण नहीं कर पाती। पुनः चंचल नेत्रों से छवि को निहारती है और मुख से निकलता है ,श्याम........सुंदर। इतने में ही पीछे खड़े श्यामसुंदर प्यारी जु के हाथ से चित्रपट लेकर उनके नेत्रों की ओर देखने लगते हैं। नेत्रों का खेल पहले की भाँति ही चलने लगता है......

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