श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास
कैसो सजीलो सजो हिंडोरो
रस रास रसीलो रसभींजो रसमग्न रसिक हियो
अनुपम अनुराग छल्क रह्यौ अनुदान प्रेम कौ होय्यौ
रसिक अनन्य आँखिन सौं झुलावै उबकत झुकत सखि रंगडोरि कियौ
ऐसो सेज सजि ज्युं हरिदासि गोदि लियो
खेलत दोऊ नंदनंदन वृष्भानु दुलारि झूलन लगौ प्रेम हिंडोरो
सुरत रसरंग दोऊ भींजै तार ललित लोल कपोलन सजीले
मंद संगीत ब्यार सौं झूलै दोऊ सखि डोरि नयन सौं झूमै
ज्युं रंगमहलनि की दासि हरिदासि सुधि भूलै
रस हिंडोरो झुलावै त्युं त्युं रसिक हिय रसतालनि सौं घोलै
पीबत चंद्र चंद्रिका रस ढुरकत कोटि बिधिन सौं रति रस रूरै
छूअत स्याम स्यामा जु रस उमग्यौ स्यामा धीर खौवै
निरखि प्रिय सखि नीर भरि प्रेम विहव्ल अंतर्रस चूवै
घन भर नयन पिचकारि स्याम कछुक कट्टाछ सौं तनक छबीलै
लपक झपक अंक लियो स्यामा जु स्याम रसलीन झूलन कंचुकि अंगनि कसीजै
असन बसन सबहुं ढीलै निरख सखि स्याम अजहु स्यामा हिंडोरण झूलै
बलिहारि सखिन संग रसिकबर हरिदासि रसरंग सारनि अनुकूलै !!
कैसो है री रस कौ हिंडोरणो
युगल रसतृषित सखियों ने ऐसा हिंडोरना तैयार कियो है याकी डोरी वा स्वयं बनी हैं और झुलो स्वतः ही झूलै है ललिता सखी जु की गोदी में विराजै गौरस्याम जोरि को झुलावै है।रसिक हृदय की ताल सौं ताल बजै ऐसो नेह भीतर जो युगल रूप में प्रत्यक्ष उतर रह्यौ।
प्रियतम स्वामिनी कू सखी कै हिंडोरण भाव से तनक छेरै और स्वामिनी हिंडोरो रस में गहन रस चुवावै।जितो जितो प्रियतम गहरावै तितो ही स्यामा जु अकुलावै।यो छबि स्यामा जु की निरख प्रियतम तनिक नेत्र कट्टाक्ष सौं नयन कौरन ते छलक्यौ कि उत स्यामा जु ने अधीर होय कै स्वयं यानै लपक कर धर लियो और ऐसो गहरो रसहिंडोरणो झूल्यौ रतिरस केलि सुरत सौं ललित सखि बलि बलि सुख लीनो।न्यौछावर या रस छबीली रंग रसीली युगल अखिंयन सौं यानै सखिन नेत्र रस ढाँप लीनो।
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