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श्री प्रिया और श्रंगार , मृदुला जी

श्री राधा

श्री प्रिया श्रृंगार

श्री प्यारी को अदभुत श्रृंगार क्या कहा जावे ॥ प्रियतम निज करों से श्यामा को अदभुत सजावें हैं नित्    ॥ तो क्या आभूषण वसन से सजावें हैं प्यारी को ॥ ना ,वे तो  सजावें हैं निज हृदय के अनन्त भाव सुमनों से ॥ प्रिया जू को हार, किंकणी, कटि मेखला ,नूपुर चंद्रिका ,बेसर ,कंचुकी, चुनरी कुछ भी वस्तु ना जानियो ॥ ये सबन श्यामसुन्दर ही जानियों । जैसै श्री प्यारी के उर भाव ही सखियाँ , सहचरियाँ , किंकरियाँ तथा गोपीगण रूप प्रकट भये हैं वैसै ही तो प्रियतम उर भाव प्रिया को भूषण वसन रूप सेवा करते प्यारी जू की ॥ प्रत्येक नूपुर का मधुरातिमधुर स्वर प्रियतम के हृदय की वाणी ही तो है जो सदा प्रिया के कर्णपटुओं में प्राणेंश्वरी हृदयेश्वरी जीवनी प्राणसारसारा उर विहारिनी हृदय विलासिनी प्राण संजीवनी और न जाने ऐसे कितनी सरस पुकारें सदा सरसाती रहती ॥किंकणियों की सुमधुर रस ध्वनि, केली रस में निमग्न प्रियतम की मधुर रससिक्त श्वासें ही तो हैं ॥ प्रत्येक वसन को स्पर्श प्रियतम का हृदय स्पंदन है ॥ न जाने कितने गहनतम भावों का अंजन प्रिया के नयनों माहीं आंजते प्रियतम । न जाने कौन कौन सी रस लालसा अधरों की लालिमा बन छा जाती अधरों पर ॥ वेणी के पुष्प ,पुष्प नहीं वरन प्यारी से कही जाने वाली रहस्यमयी रस वार्तायें हैं ॥ जिन्हें प्रियतम प्यारी की वेणी में गूंथ गूंथ कभी हो चुकी केलियों की स्मृति संजोते हैं तो कभी होने वाली केलियों का गुप्त संकेत छिपातें हैं ॥।प्रत्येक भूषण को अनुभव प्यारी को प्रियतम हृदय स्वरूप ही होवे है । बिना कहे सारी रस वार्ता ,रस लालसा कह जाते प्रियतम उर की प्रिया हृदय से ये सुंदर भूषण ॥

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