Skip to main content

प्रियतम कहे महकती रहो , मृदुला

जाने है सखि कल प्रियतम कहे , महकती रहो खिलती रहो पर बताऊँ तोहे मेरे प्रियतम का प्रेम ही तो महक है मोरी , प्रियतम का प्रेम ही स्पर्श है मेरा प्रियतम का प्रेम ही अधर रस है मेरा प्रियतम का प्रेम ही अगं कांति है मेरी प्रियतम का प्रेम ही संपूर्ण सौन्दर्य है मेरा प्रियतम का प्रेम ही लावण्य है मेरा प्रियतम का प्रेम ही मेरे एक एक आभूषण की मधुर खनक है । प्रियतम का प्रेम ही मति है मेरी प्रियतम प्रेम ही वृत्ति है मेरी ॥ जो कछु  भी है मो में वो सब मात्र मेरे प्राण वल्लभ का ही मधुर प्रेम है प्यारी ॥उनके प्रेम से पृथक कुछ भी नहीं मैं ॥

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...