श्री राधा
युगल के हृदय की न जाने कैसी विचित्र स्थिती है । परस्पर का सुख एक ही हृदय में उदित होता और दोऊ रूप में पुष्प के जैसा खिल उठता ॥ दोनों ओर एक सी मधुमय रसमय सुगंध प्रवाहित करता ॥ दोनों ओर परम व्याकुलता ॥ प्यारी चाहें कि प्यारे के चहुं ओर रस वर्षण करती रहुं ॥।प्यारे चाहें कि चहुं ओर से प्यारी का रस पान करता रहुँ ॥ कभी प्यारी चाहें प्यारे के हित वा को रसपान अनवरत करुँ तो प्यारे चाहें कि प्यारी पर रसवर्षण करतो रहूँ ॥ प्रिया के चहुंओर प्रियतम के अतरिक्त कछु नाहीं और प्रियतम के चहुंओर प्रिया के अतरिक्त कछु नाहीं । कैसी विलक्षण स्थिती है ना यह ॥ प्रियतम का हृदय प्यारी के सर्वस्व को नित्य समेटे हुये हुये और प्रिया का हृदय प्रियतम को नित्य समेटे हुये ॥।एक रस कमल श्री प्रिया हैं जिनके भीतर प्रियतम मधुकर अनवरत रसपान करते हुये मुग्ध हुये जा रहे हैं ॥।ये मधुकर जितना जितना कमल को रसपान करे है कमल का रस और बढता जावे ॥ बढा रस मधुकर को और और तृषित कर नव नव रसपान को ललचावे ॥ मधुकर की रस लालसा कमल को रस वर्धित करे और रस वर्धन ,मधुकर की लालसा का वर्धन करे ॥।तो प्रियतम के हृदय में विपरीत स्थिती ॥ यहाँ समझना जरा कठिन होगा ॥ कि रसपुंज के चहुंओर मधुकर अर्थात् बीच में रस कमल और चारों ओर से मधुकर रसपान अखंड समान रूप से करता हुआ ॥।तभी तो प्रिया के चारो ओर केवल प्रियतम ॥ न केवल अपनी समस्त इंद्रियों से प्रिया रस का पान करते हुये ॥ समझने में तनिक कठिन शायद पर सत्य , क्योंकि दोनों दोनों के पूर्णतया भीतर भी और दोनों दोनों के बाहर भी पूर्णतया ॥।यह स्थिति अप्राकृत है अति चिन्मय दिव्यातीत है ॥
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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