Skip to main content

लीला रस 6 , संगिनी जु

अति गहन गह्वर वन में अंधियारी रात्रि की छटा बिखरी सी है जहाँ प्रिय सखियों ने अद्भुत भव्य चाँद हिंडोरणे की व्यवस्था की है।ऐसे निकुंज में जहाँ प्राकृतिक चाँद का प्रवेश नहीं वहाँ इस चाँद हिंडोरणे की आभा प्रतिभा का क्या वर्णन हो।हिंडोरणे पर प्रियतम श्यामसुंदर प्रिया श्यामा जु संग गलबंहियाँ डाले मंद मुस्कान की छटा बिखरते परस्पर निहार रहे हैं।इस चाँद हिंडोरणे की चाँदनी इन श्रीयुगल के अद्भुत विशुद्ध प्रेम व रूपराशि के फलस्वरूप आभामंडल का निर्माण कर रही है।पुष्प समान बिखरी सखियों की टोलियाँ ज्यों चाँद हिंडोरणे पर सितारे रूप आभूषण व लटकन बंदनवार सुशोभित हो रही हैं।प्रियालाल जु रसमगे से ललाट व नयनों को मिलाए हुए चाँद हिंडोरणे पर विराजमान हैं और पवन सम सखियाँ इस रस हिंडोरणे को मंद गति से झुला रही हैं।

      अद्भुत आभा इस रस राज्य की नयनाभिराम रस झाँकी जो प्यासे दृगों की सूखी बंजर कोरों पर रसबूँद बन इन्हें नम व हरित रस छींटों से डबडबाती चंचलता चपलता से मुस्काती प्रेम सींचिंत रस से झलकाती छलकाती हैं।

जय जय श्रीयुगल सरकार जु की !!

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...