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लीला रस 2 , संगिनी जु

पूर्ण श्रृंगारित प्यारी श्यामा जु ललिता सखी जु के आग्रह पर दर्पण निहार रहीं हैं।ललिता सखी जु किसी कार्य से निकुंज से बाहर क्या जातीं हैं कि श्यामा जु तो दर्पण में स्वयं को निहारती हुईं डूबने लगतीं हैं।कुछ मंद मंद गुनगुनाती रसमयी प्रिया जु अपनी ही रूपमाधुरी के जाल में फंस चुकीं हैं।उनके नयनों के काजल में प्रियतम जैसे उन्हें निहार रहे हों वैसे वे खुद को निहारती इठला रहीं हैं।उन्हें अपने रूपसौंदर्य में पूर्ण रूपेण श्यामसुंदर के ही दर्शन हो रहे हैं।ललाट पर बिंदिया में प्रियतम अधरों की लाली में लाल जु चिबुक कपोल पर चित्रकारी में और कानों के पीछे लगे ढिठौने में श्यामसुंदर।रसफलों से महकते कलस समान कुचों पर हारावली में छुपे श्यामसुंदर ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं।सखियों द्वारा बनाई कलाकृतियों में रंग रस रूप श्यामसुंदर ही भरे हैं।आभूषणों और नीले वसन में प्रियतम श्यामसुंदर ही।जावक महावर में भी भरे हुए लाल जु।श्यामा जु की काली घनेरी पुतलियों से जैसे श्यामसुंदर ही उनकी मुखकांती और अंग प्रत्यंग को स्नेहभरी चंचल चित्तवन से निहार रहे हों।श्यामा जु यह देख मन ही मन विहरित हुईं गहनतम स्पंदित हो रहीं हैं और दर्पण में स्वयं को निहारतीं डूबतीं श्यामसुंदर से भावालिंगित हुईं करूण पुकार करतीं अपनी भावभंगिमाओं में ही रसलिप्त हो रहीं हैं।अंतर्मन की पुकार से प्रियतम श्यामसुंदर भी श्यामा जु को प्रेमालिंगन में लिए चित्रलिखे से दर्पण में ही सम्माहित हुए एकरस हो रहे हैं।

जय जय श्रीयुगल सरकार जु की !!

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