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लीला रस 1 , संगिनी जु

रसमगे श्यामा श्यामसुंदर जु परस्पर निहारते सखियों की निहारन के सुख केंद्र बने एक शीतल निकुंज में विराजित हैं जिसे सखियों ने सुगंधित व ब्यारू पुष्पों से सजाया है।बहुत ही सुंदर दो दर्पण एक एक कर प्रियालाल जु के समक्ष रख दिए गए हैं।सुरत केलि उपरांत आज श्यामा श्यामसुंदर जु को स्नान कर स्वयं अपना श्रृंगार करना है।श्रृंगार की सारी सामग्री सखियों ने श्रीयुगल के मध्य एक वेदी पर रख दी है।श्यामा श्यामसुंदर जु जैसे ही परस्पर निहारते हुए दर्पण में अपना अपना मुखकमल निरखते हैं तो उनकी दृष्टि अधर कपोल ग्रीवा व वक्ष् पर आलिंगन परिरंभन चुम्बन से सजे रति चिन्हों पर पड़ती है जिन्हें देखते ही रसतृषित युगलवर स्पंदित हो उठते हैं पर सेवायित सखियों के सुख हेतु वे अपनी सुधि ना खो बैठें सो खुद को संभाले हुए हैं।अब श्रृंगार की रसक्रिया आरंभ होती है।अर्धनिमलित रसनेत्रों से अपना प्रतिबिम्ब निहारते श्रीयुगल एक एक कर सभी आभूषण अपनी रसदेहों पर अलंकृत किए जा रहे हैं जैसे कठपुतली से बने स्वतः उनके कर उन्हें श्रृंगार धरा रहे हों।नयनाभिराम विचित्र दशा है प्रियालाल जु की।जैसे रसपिपासु भ्रमर सहज ही रसकमल की तरफ खिंचा चला आता है ऐसे ही श्यामा श्यामसुंदर जु के कर उन्हें अलंकार पहना रहे हैं।सखियाँ रसमद में चूर श्यामा श्यामसुंदर जु को निहारती ना अघाती हैं और पल पल उनकी बलाईयाँ ले रही हैं।श्रृंगार पूर्ण हो चुका है और अनवरत अश्रुओं से प्रियालाल जु का दामन वक्ष् से लिपट रहा है।दरअसल परस्पर श्रृंगार धराते श्रीयुगल जैसे खोए हुए होते हैं वैसे ही अब भी वे खुद अपना श्रृंगार करते भी डूबे हुए रहे हैं।रति चिन्हों को देख श्रीयुगल ऐसे मुग्ध हुए कि उन्हें अपने में अपने दर्शन ही ना हुए दर्पण में।श्यामा जु ने श्यामसुंदर को निहारा और श्यामसुंदर जु ने श्यामा जु को और कर दिया श्रृंगार उसी निहारन के प्रभाव में तल्लीन होकर।श्यामा जु श्यामसुंदर का प्रेम अलंकार खुद पर धरे हैं और श्यामसुंदर जु श्यामा जु की रूपकांति से सजे हुए हैं।परस्पर रसमय श्रीयुगल खुद का खुद श्रृंगार करते भी खुद ना हो सके।रसमाधुरी ही श्रृंगारित किए और भीगे सदा रस में निमग्न श्यामा जु स्वयं को श्यामसुंदर और श्यामसुंदर जु स्वयं को श्यामा जु के आभूषणों से श्रृंगारित कर लिए।अद्भुत रस श्रृंगार निरख सखियाँ बलिहार जातीं श्रीयुगल को आशीष देती मंगल गान करतीं हैं।

जय जय श्रीयुगल सरकार जु की !!

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