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लीला रस 3 , संगिनी जु

निकुंज में विराजित श्यामा श्यामसुंदर जु परस्पर सुखदान करते रूप माधुरी का नयनों से रसपान कर रहे हैं।तभी अचानक श्यामसुंदर प्रिया जु की ओर निहारते हुए उन्हें अपने हाथों से आभूषण पहनाने लगते हैं।श्यामा जु प्रियतम श्यामसुंदर जु को आभूषण पहनाते हुए देख रहीं हैं कि तभी श्यामसुंदर अपना पीताम्बर श्यामा जु को औढ़ा देते हैं जिसके धारण करते ही श्यामा जु को जाने क्या सूझी कि वे एक एक कर आभूषण उतार देतीं हैं।इधर श्यामसुंदर जु पहनाते जा रहे हैं और श्यामा जु उतारती जा रहीं हैं।श्यामसुंदर जु अपनी प्रिया जु की इच्छा जानते हैं पर यूँ ही रसवर्धन हेतु खुद को रोक नहीं पाते और वंशी को अपने अधरों पर धर मधुर तान छेड़ देते हैं और श्यामा जु अपने कंठ से लिपटे आभूषणों को स्वयं से अलग करतीं हैं और प्रियतम श्यामसुंदर जु के विशाल वक्ष् पर अपना मुखकमल रख आँखें मुंदे सुसज्जित होतीं हैं।
        अद्भुत रसस्कित युगल जोड़ी जहाँ नीलवर्ण श्यामसुंदर जु के वक्ष् पर पीताम्बर औढ़े श्यामा जु इन तृषित नेत्रों की दरस तृषा निरंतर बढ़ा रही हैं।

जय जय श्रीयुगल सरकार जु की !!

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युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

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कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

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