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रसभींजै युगलबर , संगीनी जु

"रसभींजै युगलबर"

सेजि सजि सजीलि आजहू
पिय प्यारि प्यारि पिय सरस सुरति केलि रस पाहैहू।।1।।
प्यारि रस भरैड़ि प्यारो रस लम्पट सौं
खेलि खेलैं अद्भुत अचिंत् आजहू रस कौं।।2।।
दुई फूलन दुई फूलनि सेजि रसमगि सजि
दोऊ फूलि महक अति भरि ढुरकि ढुरकि होड़ मचि।।3।।
प्यारि आजहू रससंग्रामिनि भई रसमेघ बनि बरसन लगि
प्यारो रसधरा बन प्रेमसंग्राम आजहू रस भींजै अलि।।4।।
अधर रस अधर पीबत कुच कलस रस भरि उंडेलत
भौं भृकुटि भृकुटिनि सौं मेलति भौंऊन तीक्ष्ण प्रहारि करत।।5।।
सुरति सूर सुनामिनि सी प्यारि आजहू प्यारो भई
प्यारौ पियप्यारि रस चाखति आजहू अंगनि सुअंग भरि।।6।।
दोऊन सेजि सेजहू बनि दोऊन फूलनि फूलि
रस कुचलै रसहू बहै दोऊ आजहू रस सौं सनि।।7।।
सुख अति देत पिय प्यारि बनै तत्सुख हेत प्यारि पी बनि
छिन छिन रूप बदलि जाति आजहू सुख देन की होड़ मचि।।8।।
नील पीत दोऊ रंग रस बनि घुलै दृगन तैं दृग धारि बहि
भुजमंडल भुजन सौं मिलिं कटि जाए कटि अटकनि।।9।।
चंचल चित्त चंचला सौं उरझ्यौ चपलता इकरस भीनि
महक उठि दुई दिसि अति गहरि चालि प्यारि चलि।।10।।
आजहू पिय रूप धर लियो प्यारि रसधारि सम बहि
हड़बड़ात आज सुख नेह अति बाढ़्यौ ढुरकि पिय बनि।।11।।
मोद प्रमोद सबहि जतन भूरै मोहन आजहू किसोरि बनै
रस चखात छिन छिन अछिन्न दोऊ अगिनत रूप बदलै।।12।।
सेजहि रस बन बहि दोऊ पियप्यारिहू सेजि भये
मन सौं मन तन नख सिख सौं नैक जुरै।।13।।
प्रिया आजहू रस पीबत रसभींजि सुख देत पिय
पिय रस सारहू की खानि आजहू प्रिया हेत हुए।।14।।
भ्रमरि भ्रम भूरियौ सगरे मकरंद सौं लथपथ परि
प्रिय आजहू प्रिया सुख चाहत प्रिया प्रिय सुख भरि।।15।।
बिपरित दोऊ रूप रस भरै रस समुंद जाए मिलै
भीगै एक रस सौं ऐसै जैसे मछरि जलतरंगिनि चाल चलै।।16।।
जोई जोई चाह करै प्यारि प्रिय सोई सोई करै
कठपुतरिन सौं नाच नचै आजहू प्रिय प्रिया रंग भरै।।17।।
जंघनि रस प्रिया पिए पयौधर नील रस बहै
पीत रस दामिनि नीलसुंदर आजहू पीत रस भींज रहै।।18।।
सखी आजहू स्यामा स्यामा पीवै स्याम स्याम रस पीवै
दोऊ आजहु रूप धरयौ ज्यूं दोऊन दोऊन सुख हेतहू जीवै।।19।।
आजहू रस रसनहू कौ चाखत रस बहै अनवरत
रस रहनहू सौं भींजत रस सौं रस नेह करै।।20।।
इक पल दर्पण दर्पण हुई निहारत
दूजै हि छिन रूप नेह कौ बदल जात।।21।।
प्रिया चाखै प्रिया बनै स्यामहूं
प्रियतम चखै स्यामा बनि प्रियाहूं।।22।।
अति अनोखी प्रीति की रीति
सरस प्रेम की छबि दोऊन कै रति।।23।।
निहारत निहारत दृग आसिस सुख झरत
प्रेमजोरि की प्रेमनयन सखिबृंद सुघर सलोनि।।24।।

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