श्यामसुंदर जु श्यामा जु का नाम पुकारते एक एकांत निकुंज में विराजमान वंशी बजा रहे हैं।उनकी मधुर वंशी ध्वनि की मंद धमनियों को श्यामा जु स्पष्ट सुनती हैं और समझती भी हैं।
प्रियतम श्यामसुंदर श्यामा जु से वंशी के गहन नाद में पुकार कर कहते हैं
'तुम मेरी प्रिया हो'
प्रिया जु यह सुन सुख की अनुभूति करतीं मुस्करा देतीं हैं और पलकें झुका लेतीं हैं।
तभी प्रियतम फिर से श्यामा जु को पुकारते हैं और जैसे पूछ रहे हों
'तुम मेरी प्रिया हो ना'
श्यामा जु पलकें उठा फिर से झुका लेतीं हैं।
इस बार प्रियतम उन्हें अपनी दिव्य अनुभूति कह पुकारते हैं और कहते हैं
'मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ'
प्रिया जु अभी भी मंद मुस्काती हैं और लज्जित सी अपने नीलाम्बर में अपना अति भोला व सुनहरी लज्जा से लाल हुआ मुख छुपा लेतीं हैं।
और प्रियतम श्यामसुंदर फिर से मधुर नाद में श्यामा जु से पूछते हैं
'तुम भी मुझसे प्रेम करती हो ना'
इस बार श्यामा जु तनिक रसस्कित मान भरी चितवन से कह उठतीं हैं
'तुम क्या जानो कितना प्रेम करती हूँ तुमसे'
बस इतना कहना था कि मिसरी से भी मीठी श्यामा जु की वाणी सुन श्यामसुंदर जु वंशी बजाना भूल वहीं एकांत में ही श्यामा जु की मधुर स्मृतियों में डूबने लगते हैं।
अद्भुत मधु भरी मदमस्त कर देने वाली यह भ्रमर की गुंजार सी कानों में मिसरी सी घुलती मधुर रसवार्ता प्यासे हृदय को रस से सींचित करतीं नवकमलों को सुगंधित करतीं नवभाव अंकुरित कर रही है।
जय जय श्रीयुगल सरकार जु की !!
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