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साधुता पर भाव

[10/24, 19:50] Satyajeet trishit 2:

साधू उसे जानिए
पाछे ढेला एकहु न मिले न
ना मिले दूजी कोपीन

[10/24, 19:57] Satyajeet trishit 2:

आज सिद्धन को चलन है
स्वांगन सो आकर्षण ह्वे
दुई रुपय बचावे को
पानी पे चलत है
बरसन का भजन प्रतिफल
आसन सो उठनो होय है
प्रभु जब आय गए
तनिक मुदित मन निहारिये
मांगन को कहत जबहि
मूक होई जाइये
पुनि पुनि कहत रहे
चरणन सु लिपट जाइये
कछु मांग लेवे जगत मोसे
पिंड झुंझुणो देय छुड़ाय लेय

[10/24, 20:06] Satyajeet trishit 2:

मानस लिखत दीन भये तुलसी
सूर कबीर नानक मीरा रहीमन
अखियाँ देखत रही जो भावन
कानन सु सुनत बीतत जीवन
सदा ऐसन भक्त दीन हीन रह्वे
दोई नाम दिखावो के लेत जगत
न मोई समान अकडत रह्वे ।
दीनता न त्यागिये कबहू सठमना
हरी निज पद नित नित रैन दबाय
पातक विचारिये भजन यमुना जी चढ़ाय

[10/24, 20:17] Satyajeet trishit 2:

अंक भरत मिलत है रहत संग
खेलत कूदत नाचत है संग संग

काज करे बातन करे फिरत रहे पाछन
खावत सोवत  संग एसो बने हरी साजन

दोई आखर ग्रन्थं पढ़त
माला मनरहित फेरत
अकडत भक्त बनत फिरत
केसो कुटिल तृषित बाजत

सांचो नेह नाथ चाह्वे
सत चित् होत आनन्द पाछे भागे

मन मेरो सयानो भयो
जगत अहम हटाय
भजन सेवन को
अकड़ पाय लियो

[10/24, 20:27] Satyajeet trishit 2:

जगत में भक्तन बढ़ी गई ।
कीर्तन सत्संग बहुत हजारन पावे
दैन्य । दास्य । करुण । समभाव
खोजे न अखियाँ पावे ।
ऐसो जो मिलत है पलकन न उठावे
मस्तक झुकाय सरक जावे । हरी कृपा दीनन पे कीनी । दीनता के अभिनय पे न किये है । सांचो दीन होय चित् ऐसो उपकार ब्रज रज माई करे

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