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दीनता पर वार्ता

[10/24, 20:25] Satyajeet trishit 2:

जगत में भक्तन बढ़ी गई ।
कीर्तन सत्संग बहुत हजारन पावे
दैन्य । दास्य । करुण । समभाव
खोजे न अखियाँ पावे ।
ऐसो जो मिलत है पलकन न उठावे
मस्तक झुकाय सरक जावे । हरी कृपा दीनन पे कीनी । दीनता के अभिनय पे न किये है । सांचो दीन होय चित् ऐसो उपकार ब्रज रज माई करे

[10/24, 20:31] Satyajeet trishit 2:

चित् में अपार दैन्य सागर उमड़े ।
तब हरि कृपा मिले है । कृपा सदा है ।
पर अनुभूत दैन्य चित् करे ।
सारा संसार भक्त एक मैं कुटिल कुलाचार ये भाव हृदय से उमड़े । शब्दों से नही । दीनता के सागर में हरि साक्षात् गोता लगाते है ।

[10/24, 20:51] Satyajeet trishit 2:

खाय चोखो भोगे चोखो
ऐसन संसार को स्वाद भावे चोखो

दीन होनो दीनन ही रहणो है
विलास जगत बिसार हरि चित् होनो है

[10/24, 20:52] Satyajeet trishit 2:

सारा जीवन हम अमिर होने पर लगाते है ।। और गलती से हरि का सफर उल्टा है ।।। क्या कहू ।। आप गुरु जन है

[10/24, 20:53] Satyajeet trishit 2:

हम दान देने वाले बनते है ।
हाल किसी दिन ऐसा हो की कोई
सिक्का सामने फैक दे तो समझना
बन गया काम ।। एक्ट नही । नेचरुल ।

[10/24, 20:55] Satyajeet trishit 2:

हाल दीन हो पर चाह न रहे।
दान कोई दे दे ऐसा हाल । पर लेना नही ।

[10/24, 21:04] Satyajeet trishit 2:

जब रूपगोस्वामी । सनातन गोस्वामी । खुद महा प्रभु । ललितकिशोरी जी । रहीम जी । बाईं सा । ख़ुद चैतन्य । बुद्ध । हित हरिवंश जी । और भी कई भक्त राजा आदि सब विशेष सम्पन्न रहे । सोने की चम्मच ही छुई होगी सबने । राज परिवार । व्यापार आदि सब रहा । या तो जगत या प्रभु ।
इन्होंने जगत को ठोकर मारी ।हमने उसे उठा लिया ।। अब हरि हरि कर रहे है । डल्ल्फ़ पर बैठ । वतानुकूलितता में । कर रहे है तो कुछ तो होगा । पर वो नही जो रूप गोसाई जी के संग हुआ । अनेको बार साक्षात्कार । मिलन ।
आज हम भिक्षा मांगने को तैयार नही है । रूप जी आदि राज्य वैभव से ब्रज की मधुकरी पर आये । फक्कड़ कुदरत नही बनाई तो खुद बनने में और मज़ा है । ट्रय इफ यू हैव मोर टाइम

[10/24, 21:05] Satyajeet trishit 2:

दोनों हाथ में लड्डू नही हो सकते ।
हम कितने ही होशियार हो जाये शायद वे भी कुछ तो होंगे ही ।।।

[10/24, 21:16] Satyajeet trishit 2:

चित् अर्पण हो । रबड़ी राबड़ी में भेद न रहे । भीतर से वैराग हो । खाय पिए को रस कहा भायेगा । पूरा भूखा प्यासा हो

[10/24, 21:17] Satyajeet trishit 2:

वैराग्य और भगवत् अनुराग दोनों चाहिए । दोनों में कोई एक भी नही

[10/24, 21:20] Satyajeet trishit 2:

हम जितना कृपा से जानते है उतने में हमारा हित निहित है पर ।।।

[10/24, 21:24] Satyajeet trishit 2:

सन्यास से भी कठिन वानप्रस्थ कहा है ।।।
संसार को चबा कर थूकना और मुख शुद्धि ।।। बहुत कठिन । सन्यास सरल है । ब्रह्मचर्य बाद सीधे सन्यास सरल है ।

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