Skip to main content

भाव 1 11 2015 भोग दृश्य

मानस सेवा को नेम भलो
नाना रस सु रसरसिका सेवत

निज कर सु मुख भोग पवावे
अधरामृत लगो कर चाटत जावे

कबहुँ दोउन लाड सु पवावे
कबहुँ दोउन का लाड सूं पावे

कबहुँ युगल निज निज आरोगई
कबहुँ लाली कंज  लालन अरविन्द सूं पवाई

दोउन सन्मुख होत सेवा भोग संग पावे
कबहुँ निज कोर मोहि महा प्रसादी पवावे

सरस सरिल पुनीत मनोहर दरस निज रस पायो
नित नित रूचि नाना बिधि भोग लालस बढ़ायो ।।। तृषित ।।।

सांवरे साजन की सलोनी सजनी जी मोरी
मनहर रूप की मनबसत नटवरि प्यारी

अति कोमल वादन सु पुलक ठुलक नाचत हंसनी
कृष्ण भँवर मकरन्द कुमल अधरन भिनी भिनी गावत मोहिनी

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...