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प्रकृति और शरद २५ - १० -२०१५

माधुर्य शरद का मधुर आगमन
प्रेमानन्द से प्रवाहय व्योमाभुवन
प्रकृति भीतर गोपीवत् तीव्र प्रेमास्पन्दन
रजकण-कण नृत्य उमडत् श्रवण वेणुनादन

परिवेश प्रेममय हुआ है
किसी ने पुन: निमन्त्रण भेजा है
मधुर शीतल शरद हृदय तक
तीव्र उत्कंठ मिलन प्रवाह से
भीतर कम्पित हृदय मकरन्द छुने लगी है

मैं क्या नाचुं
सब भुवन नाचे है

शीतल वेणु तरंग में
डाल पात स्वघर से
कुंजन भागे है

शरद ने वर्षा रितु की
प्रेम बगिया में मधुर थिर
रागित वीणा नाद और
वेणु का संयोजन छेडा है

वायु के पराग से भ्रमर मन
हृदय मकरन्द तक उतरे
तब भी न सुन सके निमन्त्रण
शरद का चित् ! असम्भव !
प्रेम कितना तीव्र उन अधरामृत से बहा 
सुप्त शुष्क जर्जरित धरा में निर्मल उन्माद जाग उठा
सच ! उस और का प्रेम हृदय सुन रहा है
हर शरदित श्वासन से कोई छेच रहा है
नित अप्राकृत मधुर राग वायु के पराग में अब बहा है

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