पग से लिपटी रहूँ श्यामा जु संग
झांझर का नुपुर बन संग नाचती रहेय
नित प्रति प्रेम केलि विलास रमण करेय
सखियन के सेवा रस को शीश धरेय
श्री जी सामीप्य सानिध्य रस में प्रीतरस में कलकल भये
कछु भाव सेवा से युगल अधरन पर मुसुकानी होय
ऐसो आशिष सखीयन कुँजन को पावत रहेय
श्यामा पद रज मांग भरो री सखी
श्यामाश्याम युगल वरण करो री सखी
पद बिसरे जिन पल छिन
नातो रहे शवासन से पद बिन
मन को युगल पद वास रहे
तन की न निज प्यास रहे
युगल सेवा को भाव रहे
प्रियाप्रितम मिलन को चाव रहे
स्वामिनी सहज कृपा की कोरी
देखत सुनत न जानत पापिन कु
निज कर उठावे अंकभर बेठा वे
मधुर माधुरी कर कमलन सूं
लाड करत अति मधु बतियावे
भाव न जाणु आखर न जाणु
दोउन आस बिन कछु जीवन न जाणु
ऐरी ओ श्यामा ।।
निज निर्बल बावरी नव मञ्जरी
पुकारत अति धीर थिर अधरन बोरी
संग संग राखियो ।
तनिक न बिसारियो ।
जगत रंग बहु भये
एक हित चटक कुसुमल बरसाइयो
जोरन मेरो लगाये कबहू हार गई
काज सब भये सु नयनन की कोरी
करत करुणा किरपा किशोरी
पतितन को ताज आप ही हटाइयो
तनिक लाड को पयासो हिय
निज पद धर राखियो ।
भाव भीनी बौछारन होय
तनिक तेज बदरिया से काहे झान्कत
नवनीत चित सु नव नव रस माधुरी पथ खुले है
सबन राग सहज त्यागन सूं प्रेम राग बहे है
अति कोमल पथ है
थम थम चलो री
नित होवे केलि रस
अधरन न खोलो री
जबहु मिले प्रियाप्रीतम संग रसिलि सखीयन
भाव मन ललित सु करत नेह रस सेवन
अब नित बाराती घराती सो चाव है
नित नव रस सु दुल्हादुल्हिनी को ब्याव है
सुख सुख कहत जीवन साँझ भई
अबहु न पायो निमिष सुख जडता न गई
नित युगल सुख को सहज सरल स्वीकार करणो है
सुख की अब तनिक छाँट में न रमणो है
लाल सुख लाली सुख अबहु मम जीवन सुख होनो है
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