मन माखन होवत जब आवे चुरईय्या
नाविक न कोई होवे खिंचत खिवईय्या
मलिन मन में ना गुंजत स्वर कबहू
कालिया फन पर नाचत बाजत घुंघरु
सब क्लेश तापाचार विचार फेकनो है
बृहद राशि रहित सरोवर होनो है
पूर्व बहे सरोवर मेघ से न आस करे
रिक्त चित् में सदा सच्चिदानन्द वास करे
एकहू द्वार धरि दियो शीष न उठाय फिरो
धरत पुनि पदराई दियो हरि कृपा भान रहियो
तृषित ऐसन बन जा रिक्त कूप
समुद्र आवे बनत वही मेघरूप
भरत कूप निज प्यास न बुझावे है
खग - पथिकन री प्यास बुझावे है
कूप को जल निरमल होवे
परतन परदन में रहत होवे
तडाग न जलदाशीष शीतल होवे
कृपा पे न कछु विवेकन प्रकास होवे
एकहू ही राशी पावे विभिन्न स्वादा
कूप तडाग सु सलिल झरत झरन नादा
वेद पुराणन क्षार सागर भये
जल राशी होवत पिबत न बने
रसिकन मेघ भये सार खेचत
सारन को सार केवल पिलाय रहे
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