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ब्रज अनुभुति

लीला की क्या कहू इनकी ।
निः शब्द कर छोड़ते है ।।।
युगल प्रियाप्रितम जु नित अहैतुकी
कृपा वर्षा से हृदय की वीणा का स्पंदन कम्पित तो कभी तीव्र रागित
करते है ।।। हाय ।।। बस दृश्य जगत
के लिए क्यों केवल प्राण छोड़ सब कुछ बहा ले जाते है ।।। कैसे कहूं ...
क्या कहूं प्रति पल की ब्रज रस कृपा अनुभूति दामोदर से हुए दाम को और और तीव्र कस देते है ।
श्री प्रिया सरकार का किंचित् भाव अनुभूत् हो तो ब्रज रज की कृपा से ।। ब्रज रज की साक्ष्यता स्पष्ट अनुभूति कैसे शब्दित हो । कैसे भाषित हो । वो अनुभूति प्रसाद तो ब्रज रज सी ही सुकोमल करुंतम है ।
श्री जु चरण अनुराग से पूर्व समस्त मान विसर्जित हो । यही प्रेम रस भाव  रसिक भजन कृपा से आलोकित और युगल प्रेम पद पद अनुसरनात्मक । युगल साक्ष्य अनुभूतियों से हृदय के विकार जनित कठोर पाषाण को जलवत् निश्चल निर्मल कर श्री जु प्यारी नन्हीं सी स्वामिनी के समक्ष ले जाकर खड़ा करती बरसाना परिक्रमा । कभी परिक्रमा की पूर्णता पर व्यर्थ श्वसन तन्त्र वहीँ विराम ही ले ले । या जीवन ही युगल परिक्रमा हो जाये । रसराज जु और श्री रसिका जु मिलन उत्पीड़न उत्कंठा में पग पग युगल कृपा से उठता बढ़ता ही दिखे ।
सुने -पढ़े रसिक भजन साधना कुटी स्थली जब लम्पट से जीव के समक्ष हो ।।। करुणा की द्रवल धारा श्री कलिन्दीजु (यमुना जु)यूँ पुकार कर गोद में ही बैठाने को लालायित हो ।
लाड कर रही हो ...लौटते कदम पर भी मानो नेत्र से कह रही हो माँ को छोड़ जा सकोगे । कुपुत्र की समस्त कटुता को भुला एक अनोखा आलिंगन सुख । परन्तु ज्यूँ ही आलिंगन में तन मन पर लगी धूल हटाती माँ अपने ही अंग हस्त मलिन करना चाहती हो तो कैसे पुत्र से सह सके । माँ छु कर चुपचाप मेरा मैल स्वयं छिपा लेगी किंचित् यही भाव सामीप्य के स्पंदन तक सिमट जाते है । परन्तु पुत्र का श्रेष्टतम जीवन तो जननी की गोद की वो मधुर रसीली अधपकी निद्रा का स्वांग ही रहा है । ऐसे ऐसे विपन बिहारिणी बिहारी जु की कृपा से दर्शन । मानो जीवन्त स्वप्न हो या प्रिया प्रीतम गोद में उठाये । वृन्दावन में निज भाव दर्शन करा रहे हो । रमण जु । वल्लभ जु । मोहिनी बिहारी जु । और श्री युगल भाव रस अन्तः का प्रकट स्वरूप बिहारी जु । सभी क्यूँ इतनी करुणा लूटा रहे है कि जिसे मुकवत पीने का ही मन रहे । केवल दर्शन नहीँ दर्शन से अतिरिक अनुराग-भाव-रस प्रसाद । जिसका एक एक कोर और एक एक क्षण युग ही प्रतीत हो । सच हरी संग का एक क्षण जीव के लिये युग से बृहद है ।  बिहारी जु मोहिनी बिहारि जु तो निज कोर प्रसाद मनुहार से पवाते रहे कि तनिक और पाई लो । एक कोर जीवन को रसमय धरातल पर ले जाने को पर्याप्त हो तब मिला पूर्ण निज युगल भोग तो एक एक निवाले को जन्मों की अनुभूति बना रहा हो । कुछ पाऊ तो तनिक उनका चखा ऐसा मानस कभी इस असीमता पर ले जायेगा कि शब्दातीत धारा के सिवाय कुछ नही । हाय; मेरे कृपा नाथ तनिक नहीँ विचारते कि कहाँ किस पर कृपा कर रहे है । रसिक , प्रेमी, सन्त निज परिकर प्यारो पर हो विशेष अनुगत्य समझ आता है । किसी अधम-लम्पट-कुटिल-भावशून्य-अभक्त-जगत् आसक्त पर ही इतना लाड ।।। सच जीवनचक्र के विपरीत युगल लाड दिव्य पारलौकिक प्रेम को कैसे कहे वो रस प्रेम मयी आँचल से अनावृत जो है ।
...... पुनि पुनि मानस में ब्रज रज के उठते तीव्र हृदय गति की भाँति होते स्पंदन से युगल स्पंदन तीव्र और तीव्र होता रहे ...सत्यजीत तृषित ।।।
बैठी रहूँ कुंजन के कोने , श्याम राधिका गाउ । किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊँ ...

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