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मन न भये दस बीस

मन न भए दस-बीस

ऊधौ मन न भए दस-बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग को अवराधै ईस॥

ऊधो मन एक ही है । दस बीस नहीँ । जिसे बांटते फिरे । जो एक मन रहा वो भी तो गया श्याम संग । अब कौनसा मन लाये जिसे लगाते फिरे । वैचित्य सी दशा देख व्यर्थ उपदेश न दो । अब कोई ईश्वर नहीँ कोई आराधना नही । तुम वैचित् दशा को क्या जानो । कहीँ एक स्थिति पर मन छोड़ आते तो समझते । तन मन प्राण कुछ अब हमारा कहाँ ?
आराधना भी कहाँ पूर्ण है अगर मन ही न आराध्य का हुआ । जो मन हो ही गया उनका तो कैसे स्वांग । बिना मन कैसे कौनसी पूजा । अब कुछ उपदेश का महत्व नहीँ क्योंकि कोई धारणा नहीँ हो सकती । ये उपदेश , ये धारणा कहाँ टिकेगी इसका आवास मन तो गया ही ।

इंद्री सिथिल भई केसव बिनु ज्यों देही बिनु सीस।
आसा लागि रहत तन स्वासा जीवहिं कोटि बरीस॥

देह बिना शीश जड़ हो गई हो । क्रिया- कर्म-कर्ता-और ज्ञान हीन हो गई हो इसी तरह अब इंद्रिया निष्फल हुई । अब केवल आस है तो श्वासों से कि बिना मन भी यें चल रही है । अपना शीश खो कर भी प्राण है तो प्राणनाथ की चाह है सो तभी तो ... किसी भी क्षण केशव मिलन को आ खड़े हो तो प्राण अटक से गये है । जो गया या जो भी दिख रहा उनसे दूर वो भी केवल दिखाई भर दे रहा है । देह वहीँ है जहाँ मन । जीवन मरण का भी विचार कैसे हो । विचार मन में उठते है ...मन कहाँ ? अब सञ्चालन हमारा कहाँ ? जो हो रहा है ...जो कहा सुना जा रहा है वो भी तो वहीँ से है जहाँ से मन । जब तक वें ही ना चाहे कैसे जीवन मरण का कुछ हो । सब कुछ तो उनकी चाह भर रह गया है अब । वैचित् जीवन मृत्यु से भी परम् कष्ट सा ... पर ये भी पूर्ण रस मय ही है क्योंकि वियोग विशेष योग ही है । मन वहां मोहन के पास है तो कैसी दुर्दशा । वहां तो प्रतिपल आनन्द रस ही है न ।

तुम तौ सखा स्याम सुंदर के सकल जोग के ईस।
सूर हमारैं नंदनंदन बिनु और नहीं जगदीस॥

ऊधो तुम श्यामसुन्दर के सखा ही हो योग ज्ञान के ज्ञाता ही हो । योग से तुम ईश्वर खोजते हो । खोजते-खोजते तुम ईश्वर से ही हो गए हो रूप गुण भाव आदि भी ... ।
इतना भर समझ लो कि वें ही हमारे है । और अब हम उनकी ही है । दशा - स्थिति का कोई विचार नही । और केवल वे ही आधार है । दुसरा किसे ईश्वर ही कहे ।
प्रीत का गठबंधन तो परम् है । अब वे हाथ पकड़े है अपना बनाए है अपार नेह की स्मृति शेष भर है । हमारे तो नन्दनन्दन बिना कोई ईश्वर ही नही । वे ही हमारे प्राण है ... प्रियतम् है ... स्वामी है ...ईश्वर है ... जगदीश है । 
सत्यजीत "तृषित" ।।।

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