Skip to main content

गदाधर भट्ट

प्रेम-पन्थ परै वही जो रखै न सिर को मोह।
रखै न सिर को मोह तजै जो जगमें सबसों द्रोह॥
राग-द्वेष दोउनकों त्यागे।
सदा एक प्रिय में अनुरागै।
प्रियतम ही की रति उर जागै।
जागे प्रियतम की रति मन में होय न कबहूँ छोह॥1॥
प्रिय विनु अपनो कोउ न लागै।
तन-मन हूँ की ममता त्यागै।
भुक्ति-मुक्ति दोउ खारी लागै।
खारो लागै भुक्ति-मुक्ति रस हूँ को होय न मोह॥2॥
मोह करो वा अति अनन्यता।
निजता कहा, कहो वा ममता।
होय एक बस प्रियतम-परता।
प्रियतम तजि प्रियता के रस हूँ को उर होय न छो॥3॥
ऐसो प्रेम हिये जब जागै।
प्रियतजि कहूँ न फिर मन लागै।
रति-रसमें ही मति अति पागै।
रहै न अपने में अपनो कछु, होय प्रीति सन्दोह॥4

प्रणाम

जौ लौं जीवै तौ लौं हरि भजु रे मन, और बात सब बादि ।
दिवस चारिको हला भला तू कहा लेइगो लादि ॥
मायामद गुनमद जोबनमद, भूल्यौ नगर बिबादि ।
कहि हरिदास लोभ चरपट भयो काहेंकी लागै फिरादि ॥

जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके
तरुनिमनि नित्य नवतन किसोरी ।
कृष्णतनु लीन मन रुपकी चातकी
कृष्णमुख हिमकिरिनकी चकोरी ॥१॥
कृष्णदृग भृंग बिस्त्रामहित पद्मिनी
कृष्णदृग मृगज बंधन सुडोरी ।
कृष्ण-अनुराग मकरंदकी मधुकरी
कृष्ण-गुन-गान रास-सिंधु बोरी ॥२॥
बिमुख परचित्त ते चित्त जाको सदा
करत निज नाहकी चित्त चोरी ।
प्रकृति यह गदाधर कहत कैसे बनै
अमित महिमा इतै बुद्धि थोरी ॥३॥

जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक
गोबिंद गोपीजनानंद राधारमन ।
नंद-नृप-गेहिनी गर्भ आकर रतन
सिष्‍ट-कष्‍टद धृष्‍ट दुष्‍ट दानव-दमन ॥१॥
बल-दलन-गर्व-पर्वत-बिदारन
ब्रज-भक्त-रच्छा-दच्छ गिरिराजधर धीर ।
बिबिध बेला कुसल मुसलधर संग लै
चारु चरणांक चित तरनि तनया तीर ॥२॥
कोटि कंदर्प दर्पापहर लावन्य धन्य
बृंदारन्य भूषन मधुर तरु ।
मुरलिकानाद पियूषनि महानंदन
बिदित सकल ब्रह्म रुद्रादि सुरकरु ॥३॥
गदाधरबिषै बृष्‍टि करुना दृष्‍टि करु
दीनको त्रिविध संताप ताप तवन ।
मैं सुनी तुव कृपा कृपन जन-गामिनी
बहुरि पैहै कहा मो बराबर कवन ॥४॥

आजु ब्रजराजको कुँवर बनते बन्यो,
देखि आवत मधुर अधर रंजित बेनु ।
मधुर कलगान निज नाम सुनि स्त्रवन-पुट,
परम प्रमुदित बदन फेरि हूँकति धेनु ॥१॥
मदबिघूर्णित नैन मंद बिहँसनि बैन,
कुटिल अलकावली ललित गोपद रेनु ।
ग्वाल-बालनि जाल करत कोलाहलनि,
सृंग दल ताल धुनि रचत संचत कैनु ॥२॥
मुकुटकी लटक अरु चटक पटपीतकी
प्रकट अकुरित गोपी मनहिं मैनु ।
कहि गदाधरजु इहि न्याय ब्रजसुंदरी
बिमल बनमालके बीच चाहतु ऐनु ॥३॥

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...