Skip to main content

कौन हूँ मैं कैसी हूँ , mridula

कौन हूँ मैं कैसी हूँ
क्या जानोगे तुम मुझको

बाहर देख रहे तुम प्रियतम
भीतर कब देखोगे
निर्मल दिखती तुमको
प्यारे ये प्रेम तुम्हारा था

सदा विकारी दोषधरा मैं
उपजाती जो कलुषितता
न जाने कितने युग बीत चले
पावन न हुआ अन्तस् मेरा

नित्य लजाती देख स्वयं को
पाती निरा तममय चित को
कोई प्रकाश न है मुझमें अब
बस छाया हूँ काली काली
दौड रही जो पाने को छूने को
एक किरण स्मृति की तेरी

कोई कहा मिट्टी कर दूंगा
तुम बोले अपनी कर लूंगा
अपनाये तुम सब दोष भुलाकर
पर मैं कैसे भूंलू खुद को
नित्य गिर रही निज दृष्टि में
किस विधी नजर मिलाऊं तुमसे

तुम्हारी प्रीति अविरल है कितनी
पर ये तम कूप हैं मेरे
जो भरते ही नहीं कभी भी
जानेगा क्या कोई इनको
सब समझें उज्जवल सी मुझको

नाम मृदु होने से ही क्या
मृदुता पा ली है मैंने
हिय तो निरा पाषाण अभी भी
न फूटा रस अंकुर तनिक भी

                                मृदुला

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...