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अलबेली छब । मृदुला जु

सखि री आज तू मोरे पिय की मोहक अलबेली छवि तो देख री ॥ ऐसो सुंदर छवि कबहुं नाय  देखहुँ ॥ वा के नयन तो देख री तनिक कैसों रस के पगे सों मानों दोऊं रस कमल ही जगमग कर रह्यों हैं । लेकिन आज तो ऐसा लग रह्यो कि भ्रमरों की संगति से कमलन भी निज स्वभाव को छाडि कर भ्रमरों की चंचलता धारण कर लीनो हैं ॥ मधुकर से चंचल होय ये नेत्र कमल रतिपति के ना जाने कौन कौन से रस संकेत कर चित्त को हर रहे हैं मोरे ॥ आज तो लागे कि सबरी ब्रज वनिताओं के चित्तों को चुराय लेने को हठ कर बैठे हैं  ॥सारे ही आयुध सजाय लीनो हैं या मधुरिपु ने ॥तिरछी भ्रकुटि तो लख जरा री ॥ चंचल नयनों से चित्त हर तिरछी भ्रकुटि सों बींध  बींध घायल कर रह्यो है रसिया ॥कैसी तिरछी चितवन है या की जो हिय में गड रह्यो है री ॥ और गले की वनमाल तो देख री प्यारी ऐसा लागे की ब्रज युवतिन के हृदयों को ही पुष्पहार बना विजय माला के रूप में धारण कर लीनो है ॥ इन पुष्पों पर गुंजायमान हो रहे मधुकरों की गुन गुन तो सुन जरा ये तो पुष्पों का रसपान भूलकर अपने स्वामी का यश गान करने में ही प्रवृत्त हुये जा रहे हैं ॥ आलि री तनिक देख  तो पिय की निराली छब ॥ बिम्बाफल से लाल लाल रसीले अधरों पर वंशी को सजाय ठाडो हैं ॥ न जाने कैसी मधुर तान गावे हैं या ते कि रोम रोम पिघल इनमें ही समा जाने को उद्धृत हो उठे हैं ॥ सखि री नेक या के तिरछे चरणों पर तो दृष्टि डाल री आहा....मेरे तो जीवन हिय को वास है इन चरनन में ॥ या तिरछे चरन और इनसों लिपटे इन तिरछे ही नूपुरों की रसक्रीड़ा तो निरख री ॥ मोरे तो नयन इन नूपुरों की अठखेलियों में ही उलझ गयो हैं और श्रवण इनकी रसध्वनि मों ही डूबे जा रहे हैं ॥ अरी प्यारी तू काहे न देखे पिय की या अलबेली छवि री ॥ पर सखी भलो ही हुओ जो तू ना निरखी या की छवि ॥ जो तू तनिक सो देख लेती या को हम सबन की तरह तेरा हिय भी तेरा न रहता री ॥ ऐसो सुंदर त्रिभंगी लाल को देख भला कौन युवती है जो सर्वस ना वारे या पर ॥ अरे मेरी आलि तू काहे न देखे या को ....॥

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॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हरिवंश की,जब लगि आयौ नांहि। नव निकुन्ज नित माधुरी, क्यो परसै मन माहिं।।2।। वृन्दावन सत करन कौं, कीन्हों मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु , कैसे होत निवाह।।3।। यह आशा धरि चित्त में, कहत यथा मति मोर । वृन्दावन सुख रंग कौ, काहु न पायौ ओर।।4।। दुर्लभ दुर्घट सबन ते, वृन्दावन निज भौन। नवल राधिका कृपा बिनु कहिधौं पावै कौन।।5।। सबै अंग गुन हीन हीन हौं, ताको यत्न न कोई। एक कुशोरी कृपा ते, जो कछु होइ सो होइ।।6।। सोऊ कृपा अति सुगम नहिं, ताकौ कौन उपाव चरण शरण हरिवंश की, सहजहि बन्यौ बनाव ।।7।। हरिवंश चरण उर धरनि धरि,मन वच के विश्वास कुँवर कृपा ह्वै है तबहि, अरु वृन्दावन बास।।8।। प्रिया चरण बल जानि कै, बाढ्यौ हिये हुलास। तेई उर में आनि है , वृंदा विपिन प्रकाश।।9।। कुँवरि किशोरीलाडली,करुणानिध सुकुमारि । वरनो वृंदा बिपिन कौं, तिनके चरन सँभारि।।10।। हेममई अवनी सहज,रतन खचित बहु  रंग।।11।। वृन्दावन झलकन झमक,फुले नै

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

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