श्रीकृष्ण हों, "गोपी" हो और "मटकी" भी हो, यह असंभव ! श्रीकृष्ण को "मटकी" से बैर है और वह भी उनकी गोपियों के पास हो, यह तो वह होने ही न देंगे सो जिसके पास देखी, फ़ोड़ दी। गौरस से स्नान, वही करवा सकते हैं। राजी-राजी, गैर-राजी। और क्षणिक दिखावटी रोष के बाद गोपी कैसे आनन्द से भर जाती है, उलाहना देते हुए भी। वह तो घर से निकली ही इसलिये थी कि आज कान्हा मिले और उसकी मटकी फ़ोड़े ! उसी का जन्म सफ़ल है जिसकी मटकी, मनमोहन सांवरा फ़ोड़ दे। मिट्टी की मटकी ! मिट्टी का अहम ! मिट्टी सा अहम ! मिट्टी का तन ! किन्तु नवनीत से भरी ! परमात्मा से भरी ! मटकी ने छिपा रखा है नवनीत को ! फ़ूटेगी तो सर्वप्रथम स्वयं का स्नान होगा और फ़िर बह निकलेगा रस-समुद्र ! रस और रसराज के मध्य कोई कैसे आ सकता है? रसराज अपने प्रिय के पास कभी मटकी न रहने देंगे। रसराज से दूरी ही तब तक है जब तक मटकी है; मटकी फ़ूटी और रस एवं रसराज का महा-मिलन ! आनन्दोत्सव ! रस-रसिक-रास-रसराज !
जय जय श्री राधे !
मटकी यानि कि यह नश्वर शरीर। जीवात्मा ओर परमात्मा के बीच का बाधक यह शरीर।श्री कृष्ण ओर गोपी के बीच जैसे मटकी। मिट्टी की मटकी! मिट्टी का तन! मटकी में भरा (छिपा ) है नवनीत (माखन ), शरीर में परमात्मा छिपे हुए हैं। मटकी फुटने से नवनीत से गोपी का स्नान होगा- रस-समुद्र से यानी कि परम तत्व से! मिलन होगा आत्मा ओर परमात्मा का।रस और रसराज के बीच कोई कैसे आ सकता है? आत्मा और परमात्मा के बीच का बाधक यह शरीर (मटकी )। मटकी फुटी और रस एवं रसराज का महा मिलन!!आनन्द उत्सव!!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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