लाडिली जु का अनुसरण से सरस अतिरसमय क्या होगा ?
परन्तु प्रियाप्रियतम , की सेवा में निर्विकल्प संलग्न होना ही यहाँ आतुर सेवक का धर्म है ।
जीवन उपार्जन , जीवन के संकट तो लोक देवता ही क्या , भुत प्रेत तक दूर भी कर सकते है , बढ़ा भी सकते है । भौतिक जीवन को व्यवस्थित करना युगल का काम नहीँ । यह तो कोई भी विभाग कर सकता है ।
कहने को लाखों करोड़ों अनुयायी मिलते है ।
फिर भी स्व रस , स्व आनन्द हेतु । और यह स्वरस स्वानन्द भी कही भी सिद्ध हो सकता है ।
सभी धर्म , क्षेत्र , विभाग , लोक , आदि से अतीत युगल तत्व और वृन्दावन तत्व क्या कहता है ? क्या चाहता है ? परम् ब्रह्म का यह स्वरूप इतना विशेष क्यों है ? क्या यहाँ अन्य स्वरूप से भिन्न है यह कोई नहीँ सोचता ।
सत् चित् आनन्द की प्राप्ति भी बिना श्यामाश्याम होती है , इससे भी गहन है यह रस ।
क्या है वह , वह है यहाँ ईश्वर अपनी अह्लादिनी संग स्वयं आनन्दित है ।
यहाँ सृष्टि ईश्वर का स्व आनन्द हेतु है , वह भी अपनी स्वरूपभुता आराध्या धारणा आत्म प्रकाश आह्लादिनी को भीतर से पृथक् जान कर और उनसे भी अन्य अन्य स्वरूप की आवश्यक उत्पति । गोपी भाव से ।
यह यहाँ ही विशेष है , परम् रसानन्द मय स्वयं भगवान । और उनकी रस तृषा की सिद्धि में रस पथिक । स्व की नहीँ परम् की रस तृषा की पूर्ति में । वह है युगल किंकर , मञ्जरी , सहचरी , सेवापरायण चरण दासियाँ । सम्पूर्ण भुवन स्व सुख चाहता है । ईश्वर के सुख के लिये वृन्दावन कुँज निकुँज और निभृत निकुँज है , वहाँ नियुक्त रस किंकर श्री जी की ही अंशभूता है , पृथक् नहीँ । और अपने प्रिया प्रियतम् के रस वर्धन का सञ्चार ही उनका जीवन है ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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