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कोई है , मैं नहीँ । तृषित

कौन है मेरी इन चाहतों में

कौन है मेरे अश्कों में बहता

कौन है इन महकतें लफ़्ज़ों में

कोई हैं जो मुझमें हँस कर छेड़ता देता हृदय तार कभी यूँ ही

किसे उठा है मुझमे से यें दर्द गहरा

कौन है मुझसे सिमटा

और कौन है वो बिखरता भी मुझसे जो

कोई है , कोई तो है

बड़ी देर से मैं नहीँ , है कोई

किसी दिन झुक कर ठहरा था

फिर उठ कर चला है  कोई

हैं कोई जो जी रहा है मुझमेँ कहीँ

बड़ी देर से कहीँ सोता पाया है तृषित को

मखमली ,हल्की हल्की ,नरम-नरम किसी की गोद में

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