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प्रेम देह धरै दुई लाडले , आँचल जु

रात्री का समय है,युगल बहुत ही हल्के वस्त्रो मे व आभूषण रूप मे घुटनो तक लंबी केवल एक पुष्पमाल धारण किये है।
युगल निकुंज की ओर जा रहे है।युगल झाँकी निरखिये,प्रियतम लालजु ने एक कर लाडलीजु के कांधे पर रखा हुआ है व एक से उनका लहंगा सम्हाल रखा है,और लाडली जु ने एक हाथ से चुनरी के नीचे का छोर व एक से पुष्पमाल को पकड रखा है।
लालजु कुछ झुके से,जैसे झरोखे से झाँक रहे हो ऐसे टेढे होकर नैन लाडलीजु पर जमाए है।
वही लाडलीजु यद्यपि नैनो को झुकाए हुए है तद्यपि नैन की कौर से लालजु को ही निरख रही है।
यह बात ये लालजु की अधीरता,रस बढाने हेतु ही की है।लालजु जानते है कि प्रियाजु के नयन मुझ पर ही लगे है,किंतु इन दो रस सिंधुओ मे पूर्णरूपेण डूबने को लालजु अति उत्कंठित से है।

प्रेम देह धरै दुई लाडले,सजे अनोखे निर्मल साज।
ऐकौ बसन गल पुष्पमाल एकहि,पड्यी घुटरूनी नीचौ आज।
लाल लै पाछै कर पकरत रह्यौ,कछु नीकौ सौ झुकिहै लली।
लाल ऐकौ कर सम्हारै घाघर,लली चूनर माल पकरत चली।
ज्यौ झकै झरौखे लाल त्यौ दैखै,प्यारी नैन कौर सु निरखत चली।
बढावन पिय आतुराई ना निरखै,प्यारी उर दशा जानत लली।

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