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युगल प्रेम , अमिता जी

युगल प्रेम
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गहवरवन की एक गहन कुञ्ज में पुष्प शैय्या पर श्री युगल विराजमान हैँ। श्री श्यामा श्यामसुन्दर की और प्रेमभरी दृष्टि से निहार रही हैँ। श्यामसुन्दर की दृष्टि आज प्रिया जू के रस्मत्त अधरों पर ही टिकी हुई है। सखियों द्वारा बनाई हुई पुष्प शैय्या पर बिछे पुष्पों की सुगन्ध और मन्द मन्द समीर ने रसराज के हृदय की रसतृषा को और बढ़ा दिया है। श्यामसुन्दर की दृष्टि प्रिया जू के अधरों से एक क्षण को नहीं हट रही । रस से भरे हुए उनके अधर श्री श्यामसुन्दर को एक तरह से प्रेममयी निमन्त्रण ही दे रहे हैँ श्यामसुन्दर उस रस का पान करने को लालायित हो रहे हैं। सखियों द्वारा श्यामा जू का किया हुआ पुष्प श्रृंगार इस रस भृमर को अपनी और आकर्षित कर रहा है।

    श्यामा की नेत्र श्यामसुन्दर के नेत्रों से जा टकराते हैँ परन्तु श्यामसुन्दर के नेत्र पुनः उनके रसभरे अधरों का पान करने को आतुर हैँ। श्यामा जू की मृदु सी हास्य मिलित मुस्कान जैसे उनको स्वीकृति दे रही है। श्यामा जू के अधर उस समय कम्प कमपाने लगते हैं  जैसे एक मौन सी स्वीकृति जो सर्वस्व न्यौछावर होने को आतुर है। जब रसराज के प्रेम निमन्त्रण को स्वीकृति मिल चुकी है तो युगल रस वर्षा में सिमटने को आतुर होने लगते हैं। आहा !श्यामसुन्दर का श्यामा के अधरों से अधर स्पर्श कर उस रस को पीना । परन्तु ये कैसी तृषा है जो क्षण क्षण नित्य नवीन होती जा रही है। तत्सुख वृति के कारण युगल एक दूसरे को परस्पर सुख दे रहे हैँ। गह्वर वन में पक्षियों का मधुर गान ,मन्द मन्द सुगन्धित समीर जैसे युगल की रस तृषा को क्षण क्षण नवायमान कर रही है और युगल परस्पर एक दूसरे में समाने लगते हैं

गहवरवन गहन निकुंज माँहि सखियन पुष्प शैय्या कियो निर्माण
मन्द मन्द समीर सुगन्धित पवन होय तबहुँ युगल विराजे आन
श्यामा जू निहारें श्यामसुन्दर सों  लालयित श्याम भृमर मधुपान
स्वीकृति पाय तृषित श्याम जू निरख प्यारी जू मन्द मुस्कान
रस तृषा होय नित्य नवेली नित्य नित्य नवल रस वर्षण
सखियन प्राणधन श्री युगल किशोर नित्य करें प्रेमरस वर्धन

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